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प्रमाण
यदि सीपमें 'यह चाँदो है' इस ज्ञानका विषय पहले देखी हई चाँदो है तो वहीं चाँदीका प्रतिभास अतीत रूपसे ही होना चाहिए। और उस अवस्यामें ज्ञाताको प्रवृत्ति उस चांदीमें नहीं होनी चाहिए; क्योंकि अतीत वस्तुको प्राप्त करना शक्य नहीं है । अतः इस ज्ञानका विषय सामने वर्तमान सीपको ही मानना चाहिए; क्योंकि यह ज्ञान उसी में प्रवृत्ति कराता है। जो जिसमें प्रवृत्ति कराता है, उसका विषय वही वस्तु होती है। जैसे वास्तविक चाँदीका ज्ञान वास्तविक चांदीमें प्रवृत्ति कराता है, अत: उसका विषय वही है। उसी तरह सीपमें होनेवाला 'यह चाँदी है' यह ज्ञान सामने विद्यमान सीपमें ही प्रवृति कराता है अतः उसका विषय वही है, अतीत चाँदी नहीं।
पूर्ववादी-यद्यपि इस ज्ञानका विषय पहले देखी हुई चाँदी ही है किन्तु दोषके कारण अतीत चाँदीका और सोपका भेद प्रतीत न होनेसे वह ज्ञान सामने वर्तमान सीपमें ही प्रवृत्ति कराता है ।
जैन-यह समाधान समुचित नहीं है, भेदका प्रतीत न होना मात्र प्रवृत्ति में कारण नहीं हो सकता। ज्ञाताकी प्रवृत्तिका कारण सामने चाँदीका दिखाई देना है न कि भेदकी प्रतीति न होना ।
पूर्ववादी-यद्यपि इस ज्ञानका विषय अतीत चाँदी है, फिर भी चाँदीका यह ज्ञान सामने वर्तमान वास्तविक चांदीके ज्ञानके समान ही होता है, इसीसे उसमें पुरुषको प्रवृत्ति होती है।
जैन-तब तो चूंकि यह ज्ञान वर्तमान वस्तुका ज्ञान नहीं कराता, इसलिए अतीत चांदोका प्रतिभास करानेवाले ज्ञानके ही तुल्य हुआ, अतः उसके तुल्य होनेसे पुरोवर्ती वस्तुमें उसे प्रवृत्ति नहीं करानी चाहिए; क्योंकि अतीत चांदोके ज्ञानमें ऐसा नहीं देखा जाता। ऐसी स्थितिमें सीपमें चाँदीको जाननेवाला मनुष्य सामने पड़े हुए सीपके टुकड़े में प्रवृत्ति करे या न करे। शायद कहा जाये कि सामने वर्तमान सत्य चांदीके ज्ञान और अतीत चांदोको जाननेवाले मिथ्या ज्ञानदोनों ज्ञानोंमें समानता होनेपर भी एक प्रवृत्तिमें हेतु है, दूसरा नहीं, किन्तु यह कथन संगत नहीं है। अतः सीपमें 'यह चांदो है' इस ज्ञानका विषय सोप ही है। इसलिए 'यह चाँदो है' इस ज्ञानमें विषयभेद न होनेसे इसे दो ज्ञान नहीं माना जा सकता।
१. न्या० कु०, पृ. ५६ ।
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