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श्रुतके दो उपयोग
परक्षेत्र, परकाल और परभावको अपेक्षा नहीं; क्योंकि उन सबका वहां कोई प्रसंग ही नहीं है।
समाधान--तो इसका तो यही अर्थ हुआ कि घट अन्य द्रव्य, अन्य क्षेत्र, अन्य काल और अन्य भावकी अपेक्षा नास्तिरूप है। अत: 'स्यात् अस्ति और स्यात् नास्ति' सिद्ध होता है। यदि ऐसा नियम न माना जायेगा तो वह घट हो ही नहीं सकता। क्योंकि नियत द्रव्य, नियत क्षेत्र, नियत काल और नियत भाव. रूपसे वह नहीं है, जैसे गधेकी सींग। यदि वह घट अनियत द्रव्यादिरूप है तो वह सत्ता सामान्य ही हुआ, घट नहीं; क्योंकि जैसे सर्वपदार्थव्यापिनी महासत्ता। कोई नियत द्रव्य, नियत क्षेत्र, नियत काल, और नियत भाव नहीं होता, घटका भी कोई नियत द्रव्यादि नहीं है। इसका विशेष इस प्रकार है-यदि घट जैसे द्रव्यको अपेक्षा पार्थिव रूपसे है, वैसे ही यदि जलीय आदि रूपसे भी है तो वह घट ही नहीं हो सकता; क्योंकि वह तो द्रव्यत्वकी तरह पृथिवी, जल, अग्नि, वायु आदि भी है। तथा जैसे वह इस क्षेत्रमें है वैसे ही यदि अन्य समस्त क्षेत्रोंमें भी हो तो वह घट नहीं रह जायेगा, वह तो आकाश बन जायेगा; क्योंकि आकाश सर्वत्र पाया जाता है। यदि इस कालकी तरह वह अतीत और अनागत कालमें भी वर्तमान हो तो वह घट नहीं रह जायेगा, किन्तु त्रिकालवर्ती होनेसे मिट्टी रूप हो जायेगा । जैसे इस देश, कालरूपसे वह घट हम लोगोंके प्रत्यक्ष है और पानी वगैरह लानेके काममें आता है वैसे ही यदि अतीत और अनागतकालों तथा अन्य देशोंमें भी वह हमारे प्रत्यक्षका विषय होता है और पानी वगैरह भरनेके काम आता है तथा जैसे नव रूपसे है वैसे ही पुरातन रूपसे भी है अथवा समस्त रस, समस्त रूप, समस्त गन्ध, समस्त स्पर्श, समस्त आकार आदि रूपसे भी है तो वह घट नहीं रह जायेगा, किन्तु सर्वव्यापी होनेसे महासत्ता हो जायेगा। जैसे महासत्ता किसी वस्तुसे और वस्तुधर्मसे व्यावृत्त नहीं है अतः वह घट नहीं है। इसी तरह घट भी घटरूप न रहकर महासत्तारूप हो जायेगा।
___ इसी तरह मनुष्य रूपसे विवक्षित जीव भी स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्वभावकी दृष्टिसे ही अस्ति है अन्य द्रव्यादि रूपसे नहीं। यदि वह अन्य रूपसे भी 'अस्ति' हो तो वह मनुष्य ही नहीं रहेगा; क्योंकि उसका कोई नियत द्रव्यादि नहीं है जैसे गधेकी सींग । यदि वह अनियत द्रव्यादि रूप है तो वह मनुष्य न रहकर महासत्ता हो जायेगा। इसका विशेष इस प्रकार है--यदि वह मनुष्य जैसे जीव द्रव्यरूपसे है वैसे ही यदि पुद्गलादि द्रव्यरूपसे भी हो तो वह मनुष्य ही नहीं रहेगा; क्योंकि द्रव्यत्वको तरह पुद्गलादिमें भी उसका अस्तित्व पाया जाता है।
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