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जैन न्याय
तथा शब्दकी व्यंजक ध्वनि किस प्रमाणसे सिद्ध है ?
मीमां०-अर्थापत्ति प्रमाणसे ध्वनियोंको प्रतीति इस प्रकार होती है-शब्द नित्य है, इसलिए वह उत्पन्न नहीं होता। केवल संस्कार ही किया जाता है । यदि ध्वनियाँ न होती तो यह विशिष्ट संस्कार न होता। अतः व्यंजक ध्वनिका अस्तित्व सिद्ध है।
जैन-मीमांसकोंने तीन प्रकारका संस्कार माना है-शब्दसंस्कार, इन्द्रियसंस्कार और उभयसंस्कार । प्रथम पक्षमें शब्दसंस्कारसे आपका क्या आशय है ? शब्दको उपलब्धि, अथवा शब्दमें किसी अतिशयका देखा जाना अथवा शब्दके स्वरूपकी परिपुष्टि होना, अथवा व्यंजकोंका निकट होना, अथवा आवरणका हट जाना। यदि शब्दकी उपलब्धिका नाम संस्कार है तो उससे ध्वनिका अस्तित्व कैसे जाना जा सकता है; क्योंकि शब्दको उपलब्धि तो शब्द और श्रोत्रके होनेपर होती है। दूसरे पक्षमें वह अतिशय शब्दसे भिन्न किया जाता है अथवा अभिन्न किया जाता है ? यदि वह अतिशय शब्दसे भिन्न है तो शब्दमें कुछ भी नहीं हुआ कहलाया। अतः अतिशयके होनेपर भी शब्द सुनाई नहीं देगा । यदि अतिशय शब्दसे अभिन्न है तो अतिशयको तरह शब्द भी उत्पन्न हुआ कहलायेगा। और ऐसा होनेपर शब्द अनित्य ठहरेगा। तथा, ये ध्वनियाँ श्रोत्र देशमें ही शब्दका संस्कार करती हैं अथवा सर्वत्र ? प्रथम पक्षमें शब्द व्यापक नहीं ठहरा । तथा श्रोत्र देशमें शब्दको दृश्य और अन्य देशमें अदृश्य माननेसे शब्दकी निरंशताका घात होता है।
शब्दके स्वरूपकी पुष्टिरूप संस्कार भी नहीं बनता; क्योंकि नित्य शब्दके स्वभावको बदला नहीं जा सकता। व्यंजकोंको निकटता रूप संस्कार भी ठोक नहीं है। क्योंकि फिर तो सर्वत्र सर्वदा सब लोग सब शब्दोंको सुन सकेंगे। आव. रणका हट जाना रूप संस्कार माननेपर भी एक साथ सब शब्दोंकी उपलब्धिका 'प्रसंग आता है, अतः शब्दसंस्कार रूप अभिव्यक्ति तो ठीक नहीं है। __इन्द्रियसंस्कार रूप अभिव्यक्ति भी विचारपूर्ण नहीं है; क्योंकि श्रोत्रका "एक बार संस्कार होनेपर एक साथ समस्त शब्दोंको ग्रहण करनेका प्रसंग आता है। बला नामकी औषधिके तेलसे संस्कारित कान किन्हों शब्दोंको सुने और किन्हींको न सुने, ऐसा नहीं देखा जाता। शब्द और श्रोत्र दोनोंके संस्कारको अभिव्यक्ति मानना भी ठीक नहीं है, क्योंकि दोनों पक्षोंमें जो दोष दिये हैं वे सब दोष इस पक्षमें आते हैं । अतः शब्दको नित्य और एकरूप माननेपर आवार्य-आवारकपना और व्यंग्य-व्यंजकपना नहीं बनता। इसलिए उच्चारणसे पहले शब्दकी अनुपलब्धिका कारण आवरण नहीं है। किन्तु ताल
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