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________________ परोक्षप्रमाण अस्पष्ट ज्ञानको परोक्ष कहते हैं। परोक्ष प्रमाणके पांच भेद हैं - स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम । सभी जैन तार्किकोंने परोक्ष प्रमाणके उक्त ये पांच भेद किये हैं। केवल एक अपवाद है। अकलंकदेवकृत न्यायविनिश्चयके टोकाकार वादिराज सूरिने अपने 'प्रमाण' निर्णय' नामक निबन्धमें परोक्षके दो भेद किये हैं-एक अनुमान और दूसरा आगम । अनुमानके दो भेद किये हैं - गौण और मुख्य । गौण अनुमानके तीन भेद किये हैं - स्मरण, प्रत्यभिज्ञा और तर्क । स्मरण प्रत्यभिज्ञामें कारण है, प्रत्यभिज्ञा तर्कमें कारण है और तर्क अनुमानमें कारण है। इस तरह ये तीनों चूंकि परम्परासे अनुमान प्रमाणमें कारण हैं, इसलिए गौण प्रमाण मानकर वादिराजने इन्हें अनुमानमें गभित कर लिया है। ऐसा करने का एक ही कारण प्रतीत होता है - न्यायविनिश्चयके तीन परिच्छेदोंमें अकलंकदेवने क्रमसे प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम प्रमाणका ही कथन किया है। अतः वादिराज सूरिने परोक्ष के अनुमान और आगम भेद करके शेष तीन परोक्ष प्रमाणोंको अनुमानमें गर्भित कर लिया प्रतीत होता है । स्मरण अथवा स्मृति पहले जानी हुई वस्तुके स्मरणको स्मृतिज्ञान कहते हैं । जैसे, वह देवदत्त । स्मृतिको प्रमाण न माननेवाले बौद्ध आदिका पूर्व पक्ष-बौद्धोंका कहना है, स्मतिज्ञानके स्वरूप और विषयका विचार करनेसे स्मृति ज्ञानको प्रमाण मानना ठोक प्रतीत नहीं होता। विशेष इस प्रकार है - 'स्मृति' शब्दसे आप क्या लेते हैं - ज्ञान मात्र अथवा अनुभूत अर्थको विषय करनेवाला ज्ञान ? यदि ज्ञानमात्रका नाम स्मृति है तब तो प्रत्यक्ष आदि ज्ञान भी स्मृति कहे जायेंगे और ऐसा होनेसे स्मृतिके सिवा शेष सभी प्रमाणोंका लोप हो जायेगा; क्योंकि आप प्रत्येक ज्ञानको स्मृति मानते हैं। यदि अनुभूत अर्थको विषय करनेवाले ज्ञानको स्मृति कहते हैं तो देवदत्तके द्वारा अनुभूत पदार्थमें यज्ञदत्तको जो प्रत्यक्ष ज्ञान होता है वह भी १. 'तच्च द्विविधमनुमानमागमश्चेति। अनुमानमपि द्विविधं गौण-मुख्यविकल्पात् । तत्र गौणमनुमानं त्रिविधं स्मरणं प्रत्यभिज्ञा तर्कश्चेति। तस्य चानुमानत्वं यथापूर्वमुन्तरोत्तरहेतुतयाऽनुमाननिबन्धनत्वात् । -प्रमाणनि० पृ० ३३१ । २. न्याय० कु० च०, पृ० ४०५। प्र० क० मा०, पृ० ३३६ । २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002089
Book TitleJain Nyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, & Epistemology
File Size16 MB
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