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प्रमाणके भेद
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मुहूर्त है । किन्तु धारणाका काल संख्यात अथवा असंख्यात है।
ये अवग्रह आदि चारों ज्ञान इसी क्रमसे होते हैं, इनकी उत्पत्तिमें कोई व्यतिक्रम नहीं होता। क्योंकि अदष्टका अवग्रह नहीं होता, अनवगृहीतमें सन्देह नहीं होता, सन्देहके हुए बिना ईहा नहीं होती, ईहाके बिना अवाय नहीं होता और अवायके बिना धारणा नहीं होती। किन्तु जैसे कमलके सौ पत्तोंको ऊपर नीचे रखकर सुईसे छेदनेपर ऐसी प्रतीति होती है कि सारे पत्ते एक ही समयमें छेदे गये यद्यपि वहाँ कालभेद है, अत्यन्त सूक्ष्म होनेसे हमारी दृष्टि में नहीं आता, वैसे ही अभ्यस्त विषयमें यद्यपि केवल अवाय ज्ञानकी ही प्रतीति होती है फिर भो उससे पहले अवग्रह और ईहा ज्ञान बड़ी द्रुत गतिसे हो जाते हैं। इससे उनकी प्रतीति नहीं होती।
यह भी कोई नियम नहीं है कि इनमें से पहला ज्ञान होनेपर आगेके सभी ज्ञान होते ही हैं। कभी केवल अवग्रह ही होकर रह जाता है, कभी अवग्रहके पश्चात् संशय होकर ही रह जाता है, कभी अवग्रह, संशय और ईहा ही होते हैं, कभी-कभी अवग्रह, संशय, ईहा और अवाय ज्ञान ही होते हैं, और कभी धारणा तक होते हैं। ये सभी ज्ञान एक चैतन्यके हो विशेष हैं। किन्तु ये सब क्रमसे होते हैं तथा इनका विषय भी एक दूसरेसे अपूर्व अपूर्व है अतः ये सब आपसमें भिन्नभिन्न माने जाते हैं।
मतिज्ञानके तीन सौ छत्तीस भेद अर्थावग्रह, ईहा, अवाय और धारणा ये चारों ज्ञान मन तथा पांचों इन्द्रियोंके निमित्तसे होते हैं अतः प्रत्येकके छह-छह भेद होनेसे चारोंके चौबीस भेद होते हैं और व्यंजनावग्रह केवल चार ही इन्द्रियोंके निमित्तसे होता है । अत: सब मिलकर मतिज्ञानके २८ भेद होते हैं। तथा ये सभी मतिज्ञान बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिसृत, अनुक्त और ध्रुव व इनके प्रतिपक्षी एक अथवा अल्प, एकविध, अक्षिप्र, निसृत, उक्त और अध्रुव इन बारह प्रकारके विषयोंको जानते हैं। अतः विषयकी अपेक्षा प्रत्येक ज्ञानके बारह-बारह भेद होनेसे मतिज्ञानके समस्त भेद २८x१२ = ३३६
है।' आशय यह है कि अवाय ज्ञानके पश्चात् अविच्युति होती है। एक पदार्थविषयक उपयोगके लगातार बने रहनेका नाम अविच्युति है। और अवायका जो संस्कार बना रहता है जो कि स्मृति में कारण होता है उसे वासना कहते हैं । अकलंक आदि दिगम्बराचार्यों के अनुसार भी स्मृतिका कारण संस्कार ही धारणा है जो वास्तवमें ज्ञानरूप है। अतः हेमचन्द्राचार्य ने वादिदेवसूरिकी तरह जो उनके मतका निरसन न करके सयुक्तिक समर्थन किया है वह उचित ही है।
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