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प्रास्ताविक : ३५
किन्तु दूसरे नाम के रहते हुए सबल प्रमाणों के बिना मूलाचार को कुन्दकुन्द का नहीं कहा जा सकता । आपने एक लेख में भी लिखा है कि इतना तो सुनिश्चित रीति से कहा जा सकता है कि यह आचार्य कुन्कुन्द की कृति नहीं हो सकती। ___ आदरणीय प्रेमीजी ने लिखा है-कुछ विद्वानों ने एक कदम और आगे बढ़ कर मूलाचार और कुन्दकुन्द की बहुत सी गाथाओं को एक सी बतलाकर और दूसरे अनेक विषयों की समानता खोजकर दोनों को एक सिद्ध करने का प्रयत्न किया, किन्तु मेरी समझ में यह प्रयत्न भी गलत दिशा में हुआ है । मुझे ऐसा लगता है कि यह ग्रन्थ आचार्य कुन्दकुन्द का तो नहीं ही है, उनको विचार परम्परा का भी नहीं है, बल्कि यह उस परम्परा का जान पड़ता है जिसमें शिवार्य और अपराजित हुए हैं । ____ आचार्य पूज्यपादकृत सर्वार्थसिद्धि की प्रस्तावना में सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द जी शास्त्री ने श्रुत परम्परा के सम्बन्ध में लिखा है कि जैन परम्परा में रचना की दृष्टि से जिस श्रुत की सर्वप्रथम गणना की जा सकती है उसका संक्षेप में विवरण इस प्रकार हैअन्यनाम कर्ता
रचनाकाल षट्खण्डागम आचार्य पुष्पदन्त विक्रम की दूसरी शताब्दी भूतवलि
या इसके पूर्व कषायप्राभृत आचार्य गुणधर विक्रम की दूसरी शताब्दी
या समकालीन कषायप्राभूत चूणि आचार्य यतिवृषभ आचार्य गुणधर के कुछ
काल बाद समयप्राभृत, प्रवचनसार आचार्य कुन्दकुन्द विक्रम की पहली-दूसरी पञ्चास्तिकाय व
शताब्दि अष्टप्राभृत मूलाचार (आचारांग) आचार्य वट्ट केर आचार्य कुन्दकुन्द के
समकालीन मूलाराधना
आचार्य शिवार्य (भगवती आराधना) तत्त्वार्थसूत्र आचार्य गृद्धपिच्छ आचार्य कुन्दकुन्द के सम
लीन या कुछ काल बाद
१. कुन्दकुन्द प्राभृत संग्रह प्रस्तावना, पृ० ४६. २. आचार्य शान्तिसागर जन्मशताब्दि स्मृति ग्रन्थ पृ. ७२. ३. जैन साहित्य और इतिहास पृ० ५५.. ४. सर्वार्थसिद्धिः प्रस्तावना पृष्ठ १८-१९.
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