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प्रास्ताविक : ३३
निर्मित बताया है। इन्होंने श्वेताम्बर परम्परा के कुछ ग्रन्थों से मूलाचार की कुछ गाथाओं का मिलान भी किया है।'
पं० सुखलाल संघवी ने मूलाचार को संग्रहग्रन्थ माना है। इन्होंने अंतिम भद्रवाहु द्वारा संकलित नियुक्तिसंग्रह की अनेक गाथायें मूलाचार में संग्रहीत बताते हुए आचार्य वट्टकेर को विक्रम की छठी सदी के बाद का माना है । . पं० नरोत्तमशास्त्री ने मूलाचार को एक संपादित ग्रन्थ मानते हुए लिखा है कि इसका सम्पादन काल तीसरी सदी के बाद का नहीं हो सकता। - वट्टकेराचार्यकृत मानने वाले : आचार्य वसुनन्दि विक्रम की ११-१२वीं शती के आचार्य हैं । इन्होंने अपनी आचारवृत्ति में अनेक स्थानों पर मूलाचार के कर्ता के रूप में वट्टकेर का नामोल्लेख किया है । मूलाचारवृत्ति के प्रारम्भ के इस कथन का आशय यह है कि बल, बुद्धि और आयु में अल्प शिष्यजनों के लिए वट्टकेराचार्य ने अट्ठारह हजार पद प्रमाण आचारांग को संक्षिप्त करके मूलाचार को बारह अधिकारों में प्रस्तुत किया है। अपनी वृत्ति के अन्त में भी वट्टकेर को ही इसका कर्ता उल्लेख किया है। इतना ही नहीं, वसुनन्दि ने मूलाचार के सातवें से अन्तिम अधिकार तक के सभी अधिकारों के अन्त में मूलाचार को आचार्यवर्य वट्केरकृत होने का उल्लेख किया है।"
मूलाचार के द्वितीय भाग के अन्त में दिये गये पं० मेधावि कवि द्वारा लिखित प्रशस्ति पाठ में भी इसे वट्टकेराचार्यकृत कहा गया है।६।। ___ आदरणीय पं० नाथूराम प्रेमी ने "मूलाचार के कर्ता वट्ट केरि" नामक लेख में इसे वट्टकेराचार्यकृत मानते हुए लिखा है-"दक्षिण भारत में गांवों के नाम व्यक्ति के नाम से पहले लिखने की पद्धति बहुत समय से है ! जैसे सर्वपल्ली डॉ० राधाकृष्णन यहाँ “सर्वपल्ली" शब्द उनके गांव का ही सूचक है। 'कोण्डकुण्ड' गांव के रहने वाले आचार्य कुन्दकुन्द तथा तुम्बुलूर ग्राम के रहने के कारण
१. श्री जैनसत्यप्रकाश (मासिक पत्रिका) वर्ष ६, अंक १, क्रमांक ६१, पृ० ७. २. सन्मति प्रकरण-प्रस्तावना, पृ० ४८.
३. गुरु गोपालदास वरैया स्मृति ग्रन्थ, पृ० ३८४. • ४. मूलाचारवृत्ति मूलगुणाधिकार, भाग १, पृ० २. ५. इतिश्रीमदाचार्यवर्यवट्टकेरिप्रणीतमूलाचारे श्रीवसुनन्दिप्रणीतटीकासहिते
द्वादशोऽधिकारः । मूलाचार भाग २, १२।२०६, पृ० ३२४. ६. श्रीमद्वट्टेरकाचार्यकृत सूत्रस्य सविधेः । ___मूलाचारस्य सद्वृत्तेतुर्नामावली वे ॥
-मूलाचार भाग २, प्रशस्ति पाठ ५, पृ० ३२५.
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