SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन मूलाचार वालेसु य दाढीसु य पक्खीसु य जलचरेसु उववण्णा। संखेज्जआउठिदिया पुणेवि णिरयावहा होति ।।१२।११५॥ ति० ५० वालेसुं दाढीसुं पक्खीसुं जलचरेसु जाऊणं । संखेज्जाउगजुत्ता तेई णिरएसु वच्चंति ॥२।२९०॥ मूलाचार आईसाणा देवा चएत्तु एइदिएत्त णे भज्जा। तिरियत्तमाणुसत्ते भयणिज्जा जाव सहसारा ॥१२।१३६।। ति० ५० आईसाणा देवा जणणा एइदिएसु भजिदव्वा । उवरि सहसरंतं ते भज्जा सण्णि तिरियमणुवत्ते ।।८।६८०॥ मूलाचार तत्तो परं तु णियमा देवावि अणंतरे भवे सव्वे ।। उववज्जंति मणुस्से ण तेसि तिरिएसु उववादो ।।१२।१३७।। ति० प० तत्तो उवरिमदेवा सव्वे सुक्काभिधानलेस्साए । उप्पज्जंति मणुस्से णत्थि तिरिक्खसु उववादो ।।८।६८१॥ इसी प्रकार मूलाचार के पर्याप्ति अधिकार की कुछ और भी गाथायें तिलोय-पण्णत्ती की गाथाओं स मिलती हैं। पर्याप्ति अधिकार के अतिरिक्त अन्य अधिकारों की भी गाथायें कुछ परिवर्तन के साथ तिलोयपण्ण त्ति में उपलब्ध है। मूलाचार और भगवती आराधना ___आचार्य शिवार्य (प्रथम शती) द्वारा प्रणीत यह एक मुनि-आचार विषयक महत्त्वपूर्ण एवं महान् ग्रन्थ है। भगवती आराधना जैन परम्परा के अन्तर्गत यापनीय संघ का ग्रन्थ कहा जाता है। मूलाचार और भगवती आराधना में अनेक गाथायें ज्यों की त्यों उपलब्ध हैं, जैसे मूलाचार में उल्लिखित गाथा संख्या ५६, ११९, १६३, १६४, २३७, २३९, २४५, २४६, २६९, २७७, २९५, २९६, २९९, ३००, ३०२, ३०७, ३०८, ३१४, ३१५, ३२६, ३२७, ३२८, ३२९, ३३, ३३३, ३३४, ३३६, ३३७, ३३८, ३४०, ३४१, ३४२, ३४३, ३४६, ३५३, ३५६, ३५८, ३६५, ३६९, ३७२, ३७३, ३७४, ३७५, ३७६ ३७७, ३७८, ३७९, ३८०, ३८५, ३८६, ३८७, ३८८, ३९१, ३९२, ३९६, ४००, ४०१, ६९२, ७०२, ९००, ९०७, ९०८, ९४०, ९६९, १०३० ये गाथायें क्रमशः भगवती आराधना में निम्न क्रम में उल्लिखित हैं : ५४७, १. मूलाचार की गाथा संख्या १२।१०, १२।९०, १३४, १३५ एवं तिलोय पण्ण त्ति की गाथा सं० ३।१२५, २०९, ८१५६५, ५६०, ५६१ प्रायः समान हैं। २. मूलाचार ८।९-१२ तथा तिलोय पण्णत्ति २।११-१४ एवं मूलाचार ८०२२-२३ तथा तिलोय पण्णत्ति १६१३३-१३४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgi
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy