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प्रास्ताविक : १९
मूलाचार और षट्खण्डागम की धवला टीका :
आचार्य पुष्पदन्त और भूतबली ( ई० प्रथम शती) कृत षट्खण्डागमसूत्र शौरसेनी जैनागम का महत्त्वपूर्ण महान् ग्रन्थ है । इस पर आचार्य वीरसेन (ई० की ९वीं शताब्दी का पूर्वाद्ध) कृत धवला टीका का जैनसाहित्य में अद्वितीय स्थान है। यह धवला टीका सोलह खण्डों में प्रकाशित हो चुकी है । आचार्य वीरसेन ने अपनी धवली टीका में मूल ग्रन्थ के विषय कथन का विस्तृत और स्पष्ट विवेचन प्रस्तुत करने में अपूर्व सफलता प्राप्त की है। इस टीका की अनेक विशेषताओं में एक यह भी है कि आचार्य वीरसेन ने मूलग्रन्थ के विषय प्रतिपादन हेतु अपने से पूर्व अनेक आचार्यों और उनके ग्रन्थों के तद्विषयक गाथाओं आदि प्रमाणों को 'भणितं' 'उक्तं च' आदि शब्दों के उपयोग द्वारा तथा कहीं-कहीं ग्रन्थनामोल्लेख पूर्वक उद्धृत किया है । यह उनकी साहित्यिक सच्चाई तथा पक्षपात रहित गहन एवं विशाल अध्ययन-मनन का परिचायक है । इसके आधार पर जहाँ जैन साहित्य के अनेक आचार्यों तथा उनके उपलब्ध-अनुपलब्ध साहित्य का परिचय प्राप्त हुआ है वहाँ इतिहास की दृष्टि से उनके समयादि निर्धारण को अनेक गुत्थियाँ भी सुलझी हैं ।
आचार्य वीरसेन ने धवला टीका में प्रमाण के रूप में तद्विषयक मूलाचार की अनेक गाथायें उसी रूप में अथवा कुछ शब्दान्तरों में 'उक्तं च' शब्द द्वारा तथा मूलाचार को आचाराङ्ग नाम से अभिहित कर उद्धृत की हैं। इनमें से कुछ गाथाओं का विवरण प्रस्तुत हैमूलाचार
धवला टीका खण्ड १, भाग १, पुस्तक १, जीवस्थान
सत्प्ररूपणा अध्याय गाथा संख्या
गाथा संख्या पृष्ठ
१८
४
५८
३१ ५० ६५७४
१० १० १२
१२१ १२२ ५०
१००
७१ १३४
२३७
१. षटखण्डागम धवलाटीका पुस्तक ४ पृष्ठ ३१६ । २. षट्खण्डागम धवला टीका, जैन संस्कृति संरक्षक संघ सोलापुर से प्रकाशित
संशोधित संस्करण, सन् १९७३ ।
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