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प्रास्ताविक : १५
चारित्रपाहुड
२०१ समयसार
२०३ वा० अणु०
३५,१४,२,२३,३६ २२६,६९९,७०१,७०२, १,२,२२ ।
७०९,६९१,६९२ । पंचास्तिकाय ७५,१४८
२३१,९६६ । दर्शन पाहुड
८४१ बोधपाहुड ३५,३३
११९१,११९७ । उपर्युक्त गाथाओं के अतिरिक्त यत्र-तत्र अनेक समानताएँ दोनों में पाई जाती हैं, जैसे--
मंगलाचरणगत समानता : दोनों में इस विषय में कई समानताएँ हैं। दोनों ही अधिकारों के प्रारम्भ में निम्नलिखित रूप में मंगलाचरण करते हैंमूलाचार-एस करेमि पणामं जिणवरवसहस्स वड्ढमाणस्स
सेसाणं च जिणाणं सगणगणधराणं च सव्वेसि ।।३।। द० पा०-काऊण णमुक्कारं जिणवरवसहस्स वड्ढमाणस्स ।१। मूलाचार--काऊण णमोक्कारं अरहताणं तहेव सिद्धाणं ।७।१। लिं० पा०-काऊण णमोक्कारं अरहंताणं तहेव सिद्धाणं ।। मूलाचार-सिद्ध णमंसिदूण य झाणुत्तमखविददीह संसारे ।
दह दह दो य जिणे दह दो अणुपेहणं बोच्छं ।।८।। वा० अणु०-णमिऊण सव्वसिद्ध झाणुत्तमखविददीहसंसारे ।
दस दस दो दो य जिणे दस दो अणुपेहणं बोच्छे ।।१। विषय कथन की प्रतिज्ञा : मूलाचार के प्रत्येक अधिकारों के आरम्भ में विषय प्रतिपादन की प्रतिज्ञा की गई है। इस प्रकार आचार्य कुन्दकुन्द ने भी अपने ग्रन्थों में विषय प्रतिपादन की प्रतिज्ञा की है, जैसे-- मूलाचार-इहपरलोगहिदप्थे मूलगुणे कित्तइ स्सामि ।१। चा० पा०-मुक्खाराहणहेऊ चारित्तं पाहुडं बोच्छे ।२। मूलाचार-पणमिय सिरसा वोच्छं समासदो पिंडसुद्धी दु ।६।१। पं०-एसो पणमिय सिरसा समयमियं सुणह बोच्छामि ।२।
विषयगत समानता : मूलाचार में पांच व्रतों की पाँच-पाँच भावनाओं का विवेचन किया गया है। उसी तरह चारित्र पाहुड में भी कुछ परिवर्तन के साथ पाई जाती है, जैसे-- मूलाचार-महिलालोयण-पुन्वरदिसरण संसत्तवसधि-विकहाहिं ।
पणिदरसेहिं य विरदी य भावणा पंच बह्ममि ।।५।१४३।
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