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________________ ५०४ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन दो-दो जीवसमास तथा भव्य और अभव्य में पूरी लेश्यायें होती हैं ।" मार्गणा : मार्गणा का स्वरूप : मार्गणा का अर्थ अन्वेषण है । मार्गणा, गवेषणा और अन्वेषणा ये तीनों एकार्थवाची शब्द हैं । जिन अधिकरणरूप पर्यायों में जीव का अन्वेषण किया जा सके उन्हें मार्गणा कहते हैं । मार्गणायें जीव के उन असाधारण कारण रूप परिणामों का ज्ञान कराती हैं जो गुणस्थानों की सिद्धि में साधनभूत हैं । धवला में कहा है गतियों अर्थात् मार्गणा स्थानों में चौदह गुणस्थानों से उपलक्षित जीव जिसके द्वारा खोजे जाते हैं, वह गतियों में मार्गणता नामक श्रुति है | 2 इस प्रकार संसारी प्राणियों की विविध अवस्थाओं का निश्चय करने के लिए मार्गणा सबसे अधिक उपयोगी है । संसारी जीवों का परिणमन मार्गणा स्थानों में ही हुआ करता है । जिन परिणामों के द्वारा अथवा जिन अवस्थाओं में जीवों का अन्वेषण किया जाए उसे मार्गणा कहते हैं । मार्गणा के चार अधिकार : धवला में मार्गणा के चार अधिकार बताये हैं -- मृगयिता, मृग्य, मार्गण और मार्गणोपाय | जीवादि पदार्थों का श्रद्धा करने वाला भव्य - पुण्डरीक जीव मृगयिता है, चौदह गुणस्थानों से युक्त जीव मृग्य ( अन्वेषण करने योग्य) है, जो इस मृग्य के आधारभूत हैं अर्थात् जो मृगयिता को अन्वेषण करने में अत्यन्त सहायक कारण हैं ऐसी गति आदि मार्गणा हैं तथा शिष्य और उपाध्याय आदि मार्गणा के उपाय हैं । मार्गणा के भेद : मार्गणा के चौदह भेद हैं-गति, इन्द्रिय, काय, योग, बेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्य, सम्यक्त्व, संज्ञी और आहारक ।" १. गति मार्गणा : गति नामकर्म के उदय से प्राप्त होने वाली जीव की पर्याय विशेष को गति कहते हैं । भव से भवान्तर को जिसके निमित्त से जाते. १. किण्हादीण चोद्दस तेउस्स य दोण्णि होंति विष्णेया । पउमसुक्केसु दो दो चोद्दस भव्वे अभव्वे य ॥ — कुन्द० मूलाचार ११।१६३. २. धवला १३।५, ५, ५०/२८२८. ३. घवला १११, १, ४।१३३।४. ४. गइ इंदिये च काये जोगे वेदे कसायणाणे य । संजम दंसणलेस्सा, भविया सम्मत्तसणिआहारे ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only मूलाचार १२।१५६. www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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