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________________ ४८४ : मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन मूल, अग्र, पर्व, कन्द अथवा स्कन्ध है अथवा जो बीज से ही उत्पन्न होती तथा सम्मूर्च्छन हैं वे सभी वनस्पतियाँ सप्ततिष्ठित तथा अप्रतिष्ठित दो प्रकार की होती हैं । जिनका सिरा, संधि, पर्व अप्रगट हो और जिनको भंग करने पर समान भंग हो और दोनों भंगों में परस्पर तन्तु न लगा रहे तथा छेदन करने पर भी जिसकी पुनः वृद्धि हो जाये, उसको सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति कहते हैं । इससे विपरीत अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति होती है ।" जिन वनस्पतियों के मूल, कन्द, त्वचा, प्रवाल (नवीन कोंपल), क्षुद्र शाखा (टॅहनी), पत्र, फूल, तथा बीजों को तोड़ने से समान भंग हो, उनको सप्रतिष्ठित प्रत्येक कहते हैं और जिनका भंग समान हो उसको अप्रतिष्ठित प्रत्येक कहते हैं। जिस वनस्पति के कन्द, मूल, क्षुद्रशाखा या स्कन्ध की छाल मोटी हो उसको अनन्तजीव (सप्रतिष्ठित प्रत्येक ) कहते हैं । 'जिस योनीभूत जीव में वही जीव या कोई अन्य जीव आकर उत्पन्न हो वह और मूलादिक प्रथम अवस्था में अप्रतिष्ठित प्रत्येक होता है ।" लाटी संहिता के अनुसार मूली, अदरख, आलू, अरबी, रतालू, जमीकन्द आदि मूल, गण्डरीक (एक प्रकार का कडुआ जमीकन्द) के स्कन्ध, पत्ते, दूध और पर्व ये चारों अवयव, आक का दूध, करीर, सरसों आदि के फूल, ईख की गाँठ और उसके आगे का भाग, पाँच उदम्बर फल (बड़, पीपल, ऊमर, कठूमर और पाकर फल) तथा कुमारी पिण्ड (गंवारपाठा ) की सभी शाखायें आदि साधारण वनस्पति हैं । वृक्षों पर लगी कोपलें भी साधारण हैं, पकने पर प्रत्येक हो जाती हैं । शाकों में चना, मैथी, बथुआ आदि कोई साधारण हैं तो कोई प्रत्येक । किसी-किसी वृक्ष की जड़, किसी-किसी के स्कन्ध, शाखायें, पत्ते, फूल, पर्व तथा फल आदि साधारण होते हैं । अग्रबीज, पोर (पर्व) बीज, कन्दबीज, (जड़ के अभाव में भी जिनका जन्म अनन्तकाय (साधारण शरीर ) दोनों ही प्रकार की होती हैं । सूरण आदि कन्द, अदरक आदि मूल, छाली (त्वक्) स्कन्ध, मूलाचारकार के अनुसार मूलबीज, स्कन्धबीज, बीजरुह आदि तथा सम्मूर्छिम सम्भव है) ये वनस्पतियाँ प्रत्येक और 1. १. गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १९२, १८५, १८६. २. वही, गाथा १८७-१८८, १८९. ३. लाटी संहिता - २।९१-९९. ४. मूलाचार ५।१६. Jain Education International ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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