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________________ १००-११४ १०२ १०२ १०३-१०९ १०७ ११४ ११५-१२१ (ग) सामायिक करने की विधि और समय (छ) विभिन्न तीर्थंकरों के तीर्थ में सामायिक तथा छेदोपस्थापना चारित्र २. स्तव (चतुर्विशति-स्तव) (क) स्तव के भेद (ख) स्तव की विधि ३. बन्दना (क) वन्दना के भेद (ख) वन्दना का समय (ग) वन्दना के पर्यायवाची चार नाम (घ) कृतिकर्म एवं इसके नौ अधिकार (ङ) कृतिकर्म (वन्दना) में निषिद्ध बत्तीस दोष (च) विनयकर्म (छ) विनयकर्म के पाँच भेद (ज) विनयकर्म के भेद प्रभेदों का चार्ट ४. प्रतिक्रमण (क) प्रतिक्रमण के अंग (ख) प्रतिक्रमण के दो भेद (ग) कालिक आधार पर प्रतिक्रमण के देवसिक आदि सात भेद (घ) प्रतिक्रमण की विधि (ङ) प्रतिक्रमण की परम्परा (च) दस मुण्ड ५. प्रत्याख्यान (क) प्रत्याख्यान के तीन अंग (ख) प्रत्याख्यान के भेद (ग) मूलगुण प्रत्याख्यान (घ) उत्तरगुण प्रत्याख्यान एवं इसके भेद (ङ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका में वर्णित प्रत्यास्यान के भेद-प्रभेद (च) प्रत्याख्यान के भेदों का चार्ट (छ) प्रत्याख्यान की विधि ११५ ११६ ११८ १२० १२१ १२१-१२७ १२२ १२३ १२४ १२४ १२५ १२६ १२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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