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( २५ ) जयं चरे जयं चिठे जयमासे जयं सये । जयं भुजंतो भासंतो पावं कम्मं न बंधइ ।।
–दशवकालिक ४.७ तुलनीय यतं चरे यतं तिठे यतं अच्छे यतं सये । यतं सम्मिजये भिक्खू यतमेनं पसारये ॥
-इतिवृत्तक १२, पृ० १० [ख] हत्थ-पाद परिच्छिण्णं कण्णणासवियप्पियं । अविवासस सदि णारि दूरिदो परिवज्जए ।
-१७.१०२ तुलनीय
हत्थपायपडिच्छिन्नं कण्णणासविगप्पियं ।। अवि वाससइं नारि बंभयारी विवज्जए॥
-दशवकालिक ८.५५ ( डॉक्टर ए. एम. घाटगे ने मूलाचार और दशवकालिक नियुक्ति की गाथाओं की तुलना की है—देखिये इण्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टी, १९३५ में 'दशवैकालिक नियुक्ति' नामक लेख)
[ग] कुन्दकुन्दकृत बारस-अणुवेक्खा की कितनी ही गाथायें मूलाचार के ८वें अधिकार 'द्वादशानुप्रेक्षा' से मिलती हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि ये गाथायें बारस-अणुवेक्खा से मूलाचार में ली गई हैं । ये गाथायें परंपरागत गाथायें हैं जिन्हें वट्टकेर और कुन्दकुन्द दोनों ने अपनी रचनाओं में लिया है। इनमें की पाँच गाथायें अनुक्रम से पूज्यपादकृत सर्वार्थसिद्धि में भी संगृहीत हैं। [ देखिये-आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, प्रवचनसार इण्ट्रोडक्शन, पृ. ४०)
[घ] कुन्दकुन्द की बारस-अणुवेक्खा की भांति उनके नियमसार की अनेक गाथायें भी समान रूप से वट्टकेर के मूलाचार में पाई जाती हैं । इस पर से डॉ. फूलचन्द जी जैन का अनुमान है कि वट्टकेर कुन्दकुन्द के पश्चात्वर्ती थे [पृ. १७ ] । किन्तु जैसा कहा चुका है, इससे अमुक ग्रन्थकार का पूर्ववर्ती और पश्चात् वर्ती होना सिद्ध नहीं किया जा सकता।
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