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________________ ( २१ ) स्पष्ट है कि मुलाचार के कर्ता महावीर की निग्रन्थ परम्परा द्वारा स्वीकृत षट् आवश्यक के महत्त्व पर जोर देते हुए प्रत्येक आवश्यक का अलग-अलग कथन कर रहे हैं और लिख रहे हैं कि उन्होंने आवश्यक नियुक्ति का यहाँ बखान किया है और जो इसका नित्य आचरण करता है, वह विशुद्ध आत्मा सिद्धि प्राप्त करता है। ऐसी हालत में 'आवश्यकनियुक्ति' का काल विक्रम की छठी शताब्दी बताकर, मलाचार को उत्तरकालीन रचना सिद्ध करने का प्रयत्न करना उचित नहीं जान पड़ता। इसके साथ ही यह भी एक शोध का विषय होगा कि नित्य कर्म के रूप में प्रतिपादित किये जाने वाले षट आवश्यक के पालने की प्रथा दिगम्बर सम्प्रदाय में क्यों प्रचलित नहीं रह पाई, जबकि श्वेताम्बर सम्प्रदाय में वह आज भी विद्यमान है। २. जैन दर्शन के प्रकाण्ड पंडित प्रज्ञाचक्ष पंडित सुखलाल जी संघवी ने मूलाचार का अध्ययन कर उसकी गाथाओं की आवश्यक नियुक्ति-गाथाओं से तुलना की है। इस प्रसंग पर डॉक्टर फूलचन्दजी जैन ने उनकी 'सामायिक प्रतिक्रमणनु रहस्य' तथा 'दर्शन और चिन्तन' (खण्ड २, पृष्ठ २०३) नामक रचनाओं का उल्लेख करते हुए मूलाचार एवं आवश्यक नियुक्ति की समान गाथाओं की सूची प्रस्तुत की है (पृ० २६)। पंडित जी ने मलाचार को जो संग्रह ग्रन्थ स्वीकार किया है, उसका तात्पर्य यही हो सकता है कि इस ग्रन्थ में महावीर की निर्ग्रन्थ परम्परा में प्रचलित उन गाथाओं को सम्मिलित किया गया है जो महत्त्वपूर्ण गाथायें सर्वमान्य समझी जाती थीं। इसका अर्थ यह नहीं कि 'वट्टकेर ने कुन्दकुन्दाचार्य के ग्रन्थों में से, आवश्यक की नियुक्ति में से, सन्मति प्रकरण में से तथा शिवार्यकृत आराधना में से गाथायें उद्धृत की हैं' (अनेकान्त, वर्ष २, पृ० ३१९-२४, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ४, पाश्र्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी, प० २६९ पर से)। - ३. पंडित नाथूराम जी प्रेमी के 'वट्टकेरि का मूलाचार' नामक लेख का उल्लेख किया जा चुका है । यह लेख उन्होंने आज से लगभग ३०-३५ वर्ष पूर्व लिखा. था जो उनकी सूक्ष्म अन्वेषण वृत्ति का परिचायक है। मूलाचार के अध्येता शोध-छात्रों के लिये यह आज भी मननीय है । इस लेख में उठाये हुए मुद्दों को यहां संक्षेप में दिया जा रहा है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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