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________________ ( २० ) 'किसी सूत्र पर नहीं। इस सम्बन्ध में विशेषकर देखिये, बलिन युनिवर्सिटी के प्रोफेसर क्लाउस बन का महत्त्वपूर्ण लेख 'आवश्यक स्टेडीज' (पृष्ठ ११-४९), Studien zum Jainismus and BuddhismusGedenkschrift fuer Ludwig Alsdorf, Wiesbaden, 1981)। इस दृष्टि से मूलाचार के अन्तर्गत षडावश्यकाधिकार (१.१९३ गाथायें) का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस सम्बन्ध में विशेष उल्लेखनीय है कि मूलाचार के कर्ता आचार्य वट्टकेर ने इस अधिकार में स्पष्ट रूप से 'आवस्सयणि ज्जुत्ती' (आवश्यक नियुक्ति) का उल्लेख किया है। आवस्सयणिज्जुत्ती वोच्छामि जहाकमं समासेण । आयरि परंपराए जहागदा आणुपुव्वीए ॥ २ ॥ -मैं यथाक्रम संक्षेप में आवश्यक नियुक्ति का विवेचन करूँगा जो पूर्वाचार्य परम्परा से अनुपूर्वी से (पूर्वागमक्रमं चापरित्यज्य-टीका, अर्थात पूर्व से आगत आगम के क्रम को बिना छोड़े) प्राप्त हुई है । आगे चलकर यही बात सामायिक नियुक्ति (गाथा १६), चतुर्विंशतिनियुक्ति (गाथा ४०), वंदनानियुक्ति (गाथा ७६), प्रतिक्रमणनियुक्ति (गाथा ११४), प्रत्याख्याननियुक्ति (१३४), और कायोत्सर्गनियुक्ति (१५०) के सम्बन्ध में कही गई है । अन्त में आवश्यक का अर्थ और उसकी विधि का कथन करते हुए उपसंहार में कहा गया है : णिज्जुत्ती णि ज्जुत्ती एसा कहिदा मए समासेण अह वित्थरपसंगोऽणियोगदो होदि णादवो ॥ १९२ ॥ मैंने संक्षेप में नियुक्ति की नियुक्ति (आवश्यकचूलिका आवश्यकनियुक्ति–टीका) का कथन किया है, विस्तार से जानना हो तो अनियोग (आचारांगात्-टीका) से जानना चाहिये । तत्पश्चात् अन्तिम गाथा है : आवस्सयणिज्जुत्ती एवं कधिदा समासओ विहिणा । जो उवजुजदि णिच्चं सो सिद्धि जादि विसुद्धप्पा ।। १९३ ॥ जैन साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान् पंडित नाथूराम जी प्रेमी ने अपने 'वट्टकेरि का मूलाचार नामक, महत्त्वपूर्ण लेख में यह विवेचन प्रस्तुत किया है-देखिये जैन साहित्य और इतिहास; द्वितीय संस्करण, १९५६, पृष्ठ ५५१-५२)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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