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७६ : जैन आर बोद्ध भिक्षुणो-संघ
(५) विश्वस्त, स्पष्ट तथा अर्थ- बोधक मधुरवाणी बोलने वाला हो । (६) भिक्षुणी - संघ को धार्मिक चर्चा द्वारा विषय स्पष्ट करने तथा उन्हें धर्माचरण में प्रेरित करने वाला हो ।
(७) किसी भिक्षुणी के शरीर स्पर्श की वासना से मुक्त हो । (८) बोस वर्ष अथवा इससे अधिक वर्ष का उपसम्पन्न हो । महासांधिक भिक्षुणीविनय के अनुसार भिक्खुनोवादक भिक्षु को निम्न १२ अंगों (द्वादशेहि अंगेहि ) में निष्णात होना चाहिए । '
(१) प्रतिमोक्ष नियमों का ज्ञाता हो ।
(२) शिक्षापदों को सम्यक् रूप से सिखाने वाला हो । (३) बहुश्रुत हो ।
(४) अधिचित्त शिक्षाप्रदान करने में समर्थ हो । (५) अधिशील शिक्षा प्रदान करने में समर्थ हो । (६) अधिप्रज्ञा शिक्षा प्रदान करने में समर्थ हो । (७) अखण्डित ब्रह्मचर्य वाला हो ।
(८) क्षमाशील हो ।
(९) भिक्षुणियों के गुरुधर्मों का ज्ञाता हो । (१०) मधुरवाणी ( कल्याणवाचा ) बोलनेवाला हो । (११) सूत्रों का स्पष्ट तथा दोष रहित अर्थ बतानेवाला हो । (१२) २० वर्ष या इससे अधिक वर्ष का उपसम्पन्न हो ।
ओवाद थापन
भिक्षुणियों के लिए निर्धारित यह एक प्रकार का दण्ड था । जो भिक्षुणी भिक्षुओं से उचित व्यवहार नहीं करती थी, उसे यह दण्ड दिया जाता था । सर्वप्रथम उसे विहार में आने से मना कर दिया जाता था (आवरण - विहारप्पवेसने निवारणं) । यदि इस पर भी वह कोई ध्यान नहीं देती थी, तो उसे भिक्षु से उपदेश सुनने से मना कर दिया जाता था । ऐसी भिक्षुणी को उपोसथ में दूसरी भिक्षुणी के साथ शामिल होने का अधिकार नहीं था | योग्य भिक्षु ही भिक्षुणी को ओवाद-थापन का दण्ड दे सकता था। अयोग्य अथवा असमर्थ (बाला, अव्यत्ता) भिक्षु को यह दण्ड देने का अधिकार नहीं था । यदि वह अनुचित रूप से इस अधिकार
१. भिक्षुणी विनय, १९७.
२. चुल्लवग्ग, पृ० ३८२-८३; समन्तपासादिका, भाग तृतीय, पृ० १३८४..
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