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यात्रा एवं आवास सम्बन्धी नियम : ६७ को उन मार्गों से यात्रा करने का निषेध किया गया था, जहाँ अराजकता व्याप्त हो अथवा जहाँ भिक्षा, उपाश्रय आदि मिलने में कठिनाई हो।
जैन भिक्षुणियों को बारबार नदी आदि पार करने से मना किया गया था । इसी प्रकार उन्हें स्नान करने अथवा जल में क्रीड़ा करने की अनुमति नहीं थी। बौद्ध भिक्षुणियों के लिए स्नान का कोई कठोर निषेध नहीं था। स्नान करने के लिए उनके अलग घाट (जगह) थे तथा उदकशाटिका नामक एक अलग वस्त्र धारण करने का विधान था।
भ्रमण के समय जैन भिक्षुणियाँ किसी भी परिस्थिति में किसी सवारी का उपयोग नहीं कर सकती थीं; उन्हें पैदल ही यात्रा करने का विधान था, परन्तु बौद्ध भिक्षुणियाँ अपवादस्वरूप यात्रा के समय यान (सवारी) का उपयोग कर सकती थीं। जैन भिक्षुणी के वर्षावास सम्बन्धी नियम ___ संन्यास धर्म का पालन करने वाले प्रायः सभी सम्प्रदायों के भिक्षुभिक्षणियों को वर्षाकाल में एक स्थान पर रुकने का विधान बनाया गया था। वर्षाकाल के प्रारम्भ हो जाने पर जैन भिक्षुणी को एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाना निषिद्ध था ।' उसे यह निर्देश दिया गया था कि वह एक स्थान पर सावधानीपूर्वक चार मास व्यतीत करे । भिक्षुणी को अकेले एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाना तथा अकेले वर्षावास करने का निषेध किया गया था।२ भिक्षुणियों को अपनी प्रतिनी अथवा उपाध्याया के साथ ही रहने का निर्देश दिया गया था। नियमानुसार प्रवत्तिनी के साथ कम से कम तीन साध्वियाँ तथा गणावच्छेदिनी के साथ कम से कम चार साध्वियाँ रह सकती थीं। ____ चातुर्मास व्यतीत करने के लिए भिक्षुणी को उपयुक्त उपाश्रय खोजने की सलाह दी गयी थी। अनुपयुक्त उपाश्रय में वर्षावास करना निषिद्ध था। ऐसे स्थान पर जहाँ आहार आदि प्राप्त करने में सुलभता न हो, अथवा जहाँ के लोग क्रूर हों या अन्य धर्मावलम्बियों तथा दरिद्रों की भीड़ हो, वहाँ वर्षावास करने का निषेध था। भिक्षुणी को उसी स्थान १. आचारांग, २/३/१/१.; बृहत्कल्पसूत्र, १/३७. २. नो कप्पइ निग्गंथीए एगाणियाए-गामाणुगामं दूइज्जित्तए वा वासावासं वा
वत्थए-बृहत्कल्पसूत्र, ५/१८. ३. आचारांग, २/३/१/२.
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