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३४ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ की बहन भिक्षुणी सरस्वती पर उज्जैन के राजा गर्दभिल्ल की आसक्त हो जाने की कथा सर्वप्रसिद्ध है। इसी प्रकार रास्ते पर यदि पक्षीगण दाना चुग रहे हों तो उन्हें उस रास्ते से भी जाने का निषेध किया गया था तथा साथ ही यह निर्देश दिया गया था कि भिक्षा के लिए जाते समय रास्ते में न तो कहीं बैठे और न कहीं खड़े होकर सम्भाषण करें।' भिक्षुणी को आहार के लिए उच्च-निम्न सभी घरों में जाने का निर्देश दिया गया था तथापि वह बिना सोचे-विचारे सभी लोगों के यहाँ भिक्षा के लिए नहीं जा सकती थी । वेश्या के मुहल्ले में जाना तथा वहाँ भिक्षा ग्रहण करना निषिद्ध था क्योंकि ऐसे स्थान पर जाने से वह शका का पात्र बन सकती थी। इसी प्रकार परवर्ती ग्रन्थ निशीथ सूत्र के अनुसार घृणित कुलों (दुगुच्छियं कुलेसु) में भिक्षा प्राप्त करना निषिद्ध था। टीकाकार ने घृणित कुल का अर्थ लोहार, वरूड़, चमार तथा कल्लाल आदि कुलों से किया है।
। इससे यह स्पष्ट होता है कि समाज में जाति-प्रथा के बन्धन कठोर होते जा रहे थे और श्रमणों की धार्मिक संस्थाएँ भी इससे अछूती न रह सकी थी।
स्थानांग में आहार के चार प्रकार बताये गये हैं। अ-असणं-अन्न से निर्मित खाद्य-पदार्थ ब-पाणं-पेय-पदार्थ स-खाइमं-लौंग, इलायची आदि मुख-शुद्धि के पदार्थ द-साइमं-मिष्ठान्न आदि स्वादिष्ट पदार्थ
जैन ग्रन्थों में उपयुक्त तथा अनुपयुक्त प्रकार के आहार का सम्यक् विवेचन है । साध्वी को यह निर्देश दिया गया था कि वह उपयुक्त आहार ही ग्रहण करे | आहार से सम्बन्धित दोषों को चार भागों में बांटा गया है। (क) उद्गम
(ख) उत्पादन (ग) एषणा
(घ) परिभोग
१. दशवकालिक, ५/२/७-८. २. वही, ५/१/९-१०. ३. निशीथसूत्र, १६/२८-३२; विशेष चूणि, भाग चतुर्थ, ५७६०. ४. स्थानांग, ४/२९५. ५. उत्तराध्ययन, २४/१२.
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