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________________ आहार तथा वस्त्र सम्बन्धी नियम : ३३ भिक्षुणियों के साथ जाने का विधान किया गया था। उसे यह निर्देश दिया गया था कि वह उद्विग्नता रहित, शान्तचित्त होकर भिक्षा के लिए धीरे-धीरे जाय ।२ वह युग-प्रमाण दृष्टि को देखती हुई तथा बीज, हरियाली, जीव, जल तथा सजीव मिट्टी को बचाती हुई चले । यहाँ युग-प्रमाण का अर्थ भाष्यकारों ने सामने की चार हाथ भूमि से लिया है अर्थात् उन्हें उतनी दूरी तक देखकर चलना चाहिए। इससे यह विश्वास किया गया था कि उनका मन चञ्चल नहीं होगा तथा किसी सूक्ष्म प्राणी की हिंसा की सम्भावना भी नहीं रहेगी। भिक्षुणी को विषम मार्ग तथा पेड़ों या अनाजों के डण्ठलों से युक्त मार्ग पर चलने का निषेध था। कीचड़युक्त रास्ते से भी यथासम्भव बचने का निर्देश दिया गया था. क्योंकि इससे यह सम्भव था कि साध्वी फिसल जाय और गिर पड़े। परन्तु यदि जाने का दूसरा उत्तम मार्ग न हो, तो वह उस रास्ते से सावधानीपूर्वक जा सकती थी।५ भिक्षुणी को कोयले, राख, भूसे और गोबर के ढेर के ऊपर से जाने का निषेध था। रास्ते पर यदि काटने वाला कुत्ता, उन्मत्त बैल, घोड़ा या हाथी हो अथवा युद्धस्थल पड़ता हो तो यथासम्भव उसे उस रास्ते से बच कर जाने का निर्देश दिया गया था। उसे अतिशीघ्रता से नहीं चलना चाहिए। चलते हुए हँसना या वार्तालाप करना भी वजित था। उसे भिक्षा के लिए आतुरता नहीं व्यक्त करनी चाहिए, अपितु अपनी इन्द्रियों पर संयम रखना चाहिए। जिस रास्ते पर राजा, कोतवाल आदि राज्याधिकारियों के भवन पड़ते हों, भिक्षणी को उस रास्ते से जाने का निषेध किया गया था क्योंकि ऐसे अनेक उदाहरण प्राप्त होते हैं कि राजा आदि सुन्दर भिक्षुणियों को देखकर उन्हें अपने अन्तःपुर में रखने का प्रयत्न करते थे। आचार्य कालक १. बृहत्कल्प सूत्र, ५/१६. २. दशवैकालिक, ५/१/२. ३. वही, ५/१/३. ४. वही, ५/१/४. २. वही, ५/१/५. वही, ५/१/७. ७. वही, ५/१/२. ८. वही, ५/१/१३-१४. ९. वही ५/१/१६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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