________________
जैन एवं बौद्ध धर्म में भिक्षुणी संघ की स्थापना : ७
हासिकता विवादास्पद हो किन्तु पार्श्वनाथ, जिन्हें २३ वाँ तीर्थंकर माना गया है, की ऐतिहासिकता निर्विवाद है । प्राचीन जैन आगम सूत्रकृतांग ' के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में पार्श्व की परम्परा की समालोचना मिलती है । इससे यह स्पष्ट होता है कि पार्श्व की परम्परा महावीर से भिन्न थी । पार्श्व की परम्परा के भिक्षु एवं भिक्षुणियों को विधिवत् रूप से पंचमहाव्रत ग्रहण करवाकर महावीर के संघ में सम्मिलित करने का उल्लेख है । अतः जैन-धर्म के अन्तर्गत महावीर के पूर्व भी भिक्षुणी संघ की स्थापना हो चुकी थी - ऐसा स्पष्ट होता है ।
जैन धर्म में भिक्षु संघ एवं भिक्षुणी संघ की स्थापना साथ ही साथ हुई थी । इस बात की सत्यता इस तथ्य से भी स्पष्ट होती है कि आचारांग जैसे प्राचीनतम ग्रंथों में भिक्षु एवं भिक्षुणियों के नियमों की व्यवस्था साथ-साथ की गयी है ।
बौद्ध भिक्षुणी संघ की स्थापना -
बुद्ध ने अपने पूर्ववर्ती संघों के नियमों को ध्यान में रखकर भिक्षु एवं भिक्षुणी संघ को काफी सुव्यवस्थित करने का प्रयत्न किया था । जैन भिक्षुणी संघ के विपरीत बौद्ध भिक्षुणी संघ की स्थापना भिक्षु संघ के साथ नहीं हुई थी, अपितु भिक्षु संघ की स्थापना के पश्चात् ही हुई, यद्यपि इसकी तिथि विवादास्पद है । वैशाली के कूटागारशाला में शंकित मन से बुद्ध ने स्त्रियों को संघ में दीक्षित करने का निर्णय लिया और वहीं भिक्षुणी संघ की स्थापना की। सामान्य अवधारणा यह थी कि बौद्ध धर्म में भिक्षुणी संघ की स्थापना, बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति एवं भिक्षु संघ की स्थापना के ५ वर्ष बाद हुई । भिक्षुणी संघ की स्थापना में स्थविर आनन्द का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान था, मुख्यत: उन्हीं के प्रयास के कारण भिक्षुणी संघ की स्थापना हुई थी, अन्यथा बुद्ध तो महाप्रजापति गौतमी को स्पष्ट रूप से मना कर चुके थे । चुल्लवग्ग के इस वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि उस समय तक आनन्द बुद्ध के स्थायी सेवक के रूप में नियुक्त हो चुके थे । परन्तु अन्य स्रोतों के अनुसार ज्ञान-प्राप्ति के २० वें वर्ष तक बुद्ध
१. सूत्रकृतांग, २७।७१-८०.
२. उत्तराध्ययन, २३/८७.
३. चुल्लवग्ग, पृ० ३७१; भिक्षुणी विनय, १५.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org