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उपसंहार : २२१ प्रेम नहीं पाती थीं। इस प्रकार की अनेक विवाहित-अविवाहित नारियाँ थीं जो अपने संरक्षक के लिए भार-स्वरूप थीं। ___इन सभी स्त्रियों की स्थिति दयनीय थी। वे परोपजीवी हो गई थीं
और उसी रूप में रहने को बाध्य थीं। उनको एक ऐसा आश्रय चाहिए था जहाँ वे सामाजिक प्रताड़नाओं से मुक्त सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकें । ऐसी स्थिति में भिक्षुणी-संघ की स्थापना उनके लिए एक वरदान सिद्ध हुई । समाज की प्रायः सभी संत्रस्त नारियाँ इसमें प्रवेश करने का प्रयास करने लगीं। स्पष्ट है, तत्कालीन समाज के लिए भिक्षुणी-संघ का योगदान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था ।
इसके अतिरिक्त भिक्षुणी-संघ की एक महत्त्वपूर्ण उपयोगिता नारियों को भय-मुक्त वातावरण प्रदान करना था। एक बार संघ में प्रवेश कर लेने के पश्चात् भिक्षणी सभी प्रकार की चिन्ताओं से मुक्त हो जाती थी क्योंकि संघ उनको सुरक्षा का पूर्ण आश्वासन देता था। भिक्षुओं को यह निर्देश दिया गया था कि वे किसी भी कीमत पर भिक्षुणी के शील की रक्षा करें। इस सत्प्रयास में यदि हिंसा का भी सहारा लेना पड़े तो वह स्तुत्य था तथा कदर अहिंसावादी जैन धर्म में भी ऐसी परिस्थिति में हिंसा करने वाला भिक्षु थोड़े से प्रायश्चित्त के पश्चात् शुद्ध हो जाता था। मदनरेखा और पद्मावती के पतियों की हत्या कर दी गई थी। ऐसी अवस्था में जबकि वे भयभीत होकर इधर-उधर भटक रही थीं, जैन भिक्षुणी-संघ ने उनको एक भयमुक्त वातावरण प्रदान किया । इसी प्रकार का उदाहरण बौद्ध भिक्षुणी सुदिन्निका का है। सुदिन्निका के पति की मृत्यु हो जाने के पश्चात् उसका देवर सुदिन्निका को अपनी कामवासना का साधन बनाना चाहता था। उसकी कामवासना से बचने के लिए सुदिन्निका ने बौद्ध भिक्षुणी-संघ का आश्रय ग्रहण किया। इस प्रकार ऐसी सभी नारियों को जिन्हें सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करने का कोई विकल्प नहीं था, जैन एवं बौद्ध धर्मों के भिक्षुणी-संघों ने आश्रय प्रदान किया।
इसके अतिरिक्त, भिक्षुणी संघ ने विद्याध्ययन के लिए स्वस्थ वातावरण प्रदान किया। वहाँ के शान्त एवं एकान्त वातावरण में जहाँ हर समय ज्ञानचर्चा होती थी, भिक्षुणियों ने अपनी बुद्धि एवं विद्या का सर्वाधिक उपयोग किया। ऐसी कई जैन एवं बौद्ध भिक्षुणियों के उल्लेख प्राप्त १. द्रष्टव्य-पंचम अध्याय ।
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