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नवम अध्याय
उपसंहार
जैन एवं बौद्ध-दोनों धर्मों का उद्भव प्रायः एक ही काल एवं परिस्थिति में हआ था तथा दोनों के विकास का काल भी एक ही था। यही प्रमुख कारण था कि श्रमण-परम्परा के अनुयायी इन दोनों धर्मों में काफी अंशों में समानता थी। कुछ अन्तर भी थे, परन्तु वे केवल वैचारिक भिन्नता के कारण थे। जैन धर्म आचार की अति कठोरता में विश्वास करता था जबकि बौद्ध धर्म मध्यममार्गानुयायी था। दोनों धर्मों के भिक्षुणी-संघों के तुलनात्मक अध्ययन से भी हमें यहो सत्य दृष्टिगोचर होता है।
__ जैन एवं बौद्ध धर्म में भिक्षणी-संघ की स्थापना के पूर्व भारत में किसी सुव्यवस्थित भिक्षुणी-संघ का अस्तित्व नहीं था, यद्यपि ऐसी स्त्रियों के उल्लेख प्राप्त होते हैं जो वनों में निवास करती थीं तथा तप एवं संयम का जीवन व्यतीत करतो थीं। इन संन्यासिनी स्त्रियों के कुछ व्रत-नियम अवश्य थे जिनका वे पालन करती थीं। सम्भवतः उन्हीं परम्परागत नियमों के आधार पर महावीर एवं बुद्ध ने अपने-अपने भिक्षुणी-संघ के नियम बनाए।
जैन एवं बौद्ध धर्म के भिक्षुणी-संघ में स्त्रियों के प्रवेश के प्रायः समान कारण थे। दोनों संघों में संघ-व्यवस्था को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए शारीरिक तथा मानसिक रूप से अयोग्य स्त्री का प्रवेश वजित कर दिया गया था। इसी प्रकार दोनों संघों में नपुंसकों को दीक्षा देना सर्वथा निषिद्ध था। आहार, वस्त्र तथा यात्रा आदि के सम्बन्ध में नियमों में बहुत कुछ समानता थी। भिक्षुणियों को शुद्ध तथा सात्विक आहार ही ग्रहण करने का निर्देश दिया गया था । आहार तथा वस्त्र प्राप्त करने में विशेष सतर्कता बरती जाती थी। वस्त्र के रंग के सम्बन्ध में अन्तर अवश्य द्रष्टव्य है। जैन भिक्षणियाँ श्वेत वस्त्र धारण करती थीं जबकि बौद्ध भिक्षुणियाँ काषाय । दोनों संघों में भिक्षुणियों को भ्रमण करने का निर्देश दिया गया था। वर्षाकाल में उन्हें एक ही स्थान पर ठहरने का निर्देश था। इन नियमों को जितनी सतर्कता से पालन करने का निर्देश
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