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भिक्षुणी संघ का विकास एवं ह्रास : २०५
३ - विक्रम संवत् १२१४ में दीक्षा ग्रहण करने वाले जिनचन्द्र सूरि के गच्छ में होमदेवी नामक भिक्षुणी को प्रवर्तिनी पद देने का उल्लेख है । इसके साथ ही जग श्री सरस्वती, गुण श्री आदि साध्वियों के उल्लेख हैं । '
४ -- इसी प्रकार खरतरगच्छ के ही जिनेश्वर सूरि (विक्रम संवत् १२५५ में दीक्षा ग्रहण) के समय हेमश्री नामक महत्तरा का उल्लेख है । " ५ - विक्रम संवत् १३४७ में सूरि के गच्छ में १०५ साध्वियों के
६ - विक्रम संवत् १३८९ में आचार्य जिनोदय सूरि ने अपनी बहन किल्हू के साथ दीक्षा ग्रहण की थी ।
दीक्षा ग्रहण करने वाले जिनकुशल उल्लेख हैं । 3
इस प्रकार प्राय: सम्पूर्ण भारत में १२०० ईस्वी तथा उसके पश्चात् भी जैन भिक्षुणियों के उल्लेख प्राप्त होते हैं । जैन भिक्षुणियों का अस्तित्व आज भी है और आश्चर्यजनक रूप से उनकी संख्या जैन भिक्षुओं से कहीं ज्यादा है ।
बौद्ध भिक्षुणी संघ का विकास एवं हास
बौद्ध भिक्षुणी संघ के विकास का इतिहास भी बौद्ध धर्म के विकास के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है । अनुकूल परिस्थितियों के कारण बौद्ध धर्म का जैसे-जैसे विस्तार बढ़ता गया, बौद्ध भिक्षुणी-संघ का प्रसार भी फैलता गया । महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद ४५ वर्षों तक इतस्ततः परिभ्रमण करके धर्मोपदेश के माध्यम से बौद्ध धर्म की नींव को अत्यन्त मजबूत बना दिया था ।
यद्यपि बौद्ध धर्म में भिक्षुणी संघ की स्थापना भिक्षु संघ की स्थापना के बाद और वह भी सन्देहशील वातावरण में हुई थी; परन्तु कुछ समय के अनन्तर ही यह बौद्ध संघ का एक आवश्यक अंग हो गया और बोद्ध धर्म के प्रचार एवं प्रसार में इसने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
१. खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम खण्ड पृ० ४४-४५.
२. वही, प्रथम खण्ड, पृ० १०८.
३. खरतरगच्छ पट्टावली, पृ० ३०.
४. खरतरगच्छ का इतिहास, प्रथम खण्ड, पृ० १८२.
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