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अष्टम अध्याय
भिक्षुणी-संघ का विकास एवं हास जैन भिक्षुणी-संघ का विकास एवं ह्रास
जैन भिक्षुणी-संघ के विकास का इतिहास जैन धर्म के विकास के इतिहास से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। कैवल्यज्ञान के पश्चात् महावीर धर्म-प्रचारार्थ लगभग ३० वर्षों तक निरन्तर भ्रमण करते रहे। उनके भ्रमण-क्षेत्र में मुख्यतः उत्तर प्रदेश का पूर्वी भाग, अधिकांश बिहार एवं बंगाल के पश्चिमी जिले सम्मिलित थे। चम्पा (भागलपुर), वैशाली, राजमृह, मिथिला, काशी, कोशल (श्रावस्ती), कौशाम्बी, पावा आदि प्रदेशों में उन्होंने अपना वर्षावास व्यतीत किया था। इन स्थलों में जैन भिक्षु एवं भिक्षुणी-संघ का भी प्रसार हुआ होगा-यह अनुमान सहज ही किया जा सकता है। ... प्रारम्भिक काल में उपर्युक्त क्षेत्रों में ही जैन धर्म का प्रसार था, इसका समर्थन उन जैन ग्रन्थों के आधार पर भी होता है, जिनमें यात्रा आदि के सम्बन्ध में भिक्ष-भिक्षणियों को कुछ नदियों तथा नगरों की सीमा का अतिक्रमण करने का निषेध किया गया था।
बृहत्कल्पसूत्र के अनुसार भिक्षु-भिक्षुणियों को भिक्षा-वृत्ति अथवा यात्रा के लिए पूर्व में अंग-मगध तक, पश्चिम में स्थूण देश (स्थानेश्वर) तक, दक्षिण में कौशाम्बी तक तथा उत्तर में कुणाल देश (श्रावस्ती) तक जाने की अनुमति थी। बृहत्कल्पसूत्र में ही पाँच महानदियों गंगा, यमुना, सरयू, कोशिका तथा मही-का उल्लेख है। इन नदियों को पार कर कभी-कभी तो आने-जाने की अनुमति दी गयी थी-पर इन्हें कई बार पार करना निषिद्ध था; कालान्तर में भाष्यकार ने महानदी से तात्पर्य सिन्धु एवं ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी नदियों से भी लगाया है । इससे स्पष्ट है कि इन ग्रन्थों के रचनाकाल तक जैन धर्म इतने ही क्षेत्रों तक सीमित था । भिक्षु-भिक्षुणियों को इस सीमा के भीतर ही यात्रा आदि. १. बृहत्कल्पसूत्र, १/५२. २. वही, ४/३४.
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