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१९६ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी - संघ
पचाला - के प्रव्रज्या ग्रहण करने के उल्लेख सर्वविदित ही हैं । इस प्रकार अनेक प्रतिबन्धों के बावजूद कुछ भिक्षु भिक्षुणियों के मध्य अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध विकसित हो जाते थे ।
इसके अतिरिक्त, भिक्षु भिक्षुणियों के नामों के पहले अथवा बाद में प्रयुक्त विशेषणों से भी भिक्षुणी की निम्न स्थिति की सूचना मिलती है । बौद्ध भिक्षुणी के लिए ग्रन्थों में भिक्खुनी, आर्या तथा थेरी ( महाथेरी) शब्द का प्रयोग किया गया है । इसमें भी थेरी अथवा महाथेरी शब्द का प्रयोग बहुत कम हुआ है । केवल महावंस में हम अनेक स्थलों पर संघमित्रा के लिए “थेरी" शब्द का प्रयोग देखते हैं । जहाँ तक अभिलेखों का सम्बन्ध है, भिक्षुणियों के लिए " थेरो" शब्द का प्रयोग बहुत ही कम हुआ है । बहुशः भिक्खुनी, अन्तेवासिनी तथा पवजिता आदि शब्दों काही प्रयोग हुआ है । केवल कन्हेरी बौद्ध गुफा अभिलेख ' ( Kanheri Buddhist Cave Inscription ) तथा अमरावती बौद्ध प्रतिमा अभिलेख (Amaravati Buddhist Sculpture Inscription ) में भिक्षुणियों के लिए क्रमशः " थेरी" तथा "भदन्ती" शब्द का प्रयोग हुआ है, जबकि इसके विपरीत भिक्षुओं के लिए प्रायः प्रत्येक अवसर पर "थेर भदन्त” “भदन्त ' अथवा "थेर" शब्द का प्रयोग हुआ है । एक अन्तर और द्रष्टव्य है । भिक्षुओं के लिए अधिकतर " थेर भदन्त" शब्द एक साथ प्रयुक्त हुआ है, जबकि भिक्षुणियों के लिए ऐसा कहीं नहीं है । उनके लिए "थेरी" तथा "भदन्ती” शब्द अलग-अलग ही प्रयुक्त हुए हैं । अभिलेखों में प्रयुक्त ये शब्द भिक्षुणी की तुलना में भिक्षु की श्रेष्ठता के सूचक हैं । इसके अतिरिक्त अभिलेखों में भिक्षुओं की शिष्याओं के रूप में भिक्षुणियों के उल्लेख हैं जिनके लिए अन्तेवासिनी शब्द का प्रयोग किया गया है । एक भिक्षु की - एकाधिक अन्तेवासिनियों के भी उल्लेख हैं । इस प्रकार भिक्षुओं की अपनी शिष्या तथा अन्तेवासिनी हुआ करती थीं यद्यपि अभिलेखों में कहीं-कहीं भिक्षुणियों की भी शिष्याओं के उल्लेख हैं, जैसे कुदा बौद्ध गुफा अभिलेख" (Kuda Buddhist Cave Inscription ) में लोहिता एवं विष्णुका
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1. List of Brahmi Inscriptions, 1006.
2. Ibid, 1240.
3. Ibid, 1020, 1107, 1128, 1280, 1286.
4. Ibid, 1060.
5. Ibid, 1060.
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