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भिक्षु-भिक्षुणी सम्बन्ध एवं संघ में भिक्षुणी की स्थिति : १८९. ज्येष्ठ-धर्म' के सिद्धान्त को स्वीकार कर सभी भिक्षुणियों को यह निर्देश दिया गया था कि वे भिक्षु की वन्दना-कृतिकर्म आदि करें। दिगम्बर सम्प्रदाय में भिक्षुणी की स्थिति
जैनधर्म के दिगम्बर सम्प्रदाय ने प्रारम्भ से ही भिक्षुणियों के प्रति अनुदार दृष्टिकोण का परिचय दिया। इनके अनुसार स्त्री तब तक मोक्ष नहीं प्राप्त कर सकती, जब तक वह पुरुष के रूप में पुनः जन्म न ग्रहण कर ले।' सुत्तपाहुड के अनुसार वस्त्रधारी पुरुष निर्वाण नहीं प्राप्त कर सकता, भले ही वह तीर्थंकर क्यों न हो । दिगम्बर सम्प्रदाय में निर्वस्त्रता का अति आग्रह रखा गया है इसी तर्क के आधार पर स्त्री-मक्ति के सिद्धान्त को अस्वीकार किया गया है, क्योंकि सामाजिक एवं अपनी शारीरिक स्थिति के कारण स्त्रियाँ निर्वस्त्र नहीं रह सकती थीं। इसके अतिरिक्त भी, स्त्रियों के अवगणों को बड़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया गया है। प्रवचनसार में उन्हें अज्ञानी और अधैर्यशील बताया गया है। यह भी कहा गया है कि स्त्रियों का चित्त शुद्ध नहीं होता तथा वे स्वभाव से ही शिथिल होती हैं। प्रत्येक मास उनका रुधिरस्राव होता है जिसके कारण वे निर्भयतापूर्वक एवं एकाग्रचित्त मन से ध्यान नहीं कर सकतीं। इसके अतिरिक्त स्त्रियों के योनि, स्तनों के बीच में, नाभि, और काँख
१. प्रवचनसार, ३/७. इसके विपरीत मूलाचार की एक गाथा से यह स्पष्ट
होता है कि साधु के समान साध्वियां भी इसी जन्म में मोक्ष प्राप्त कर सकती हैं"एवं विधाणचरियं चरितं जे साधवो य अज्जावो ते जगपुज्जं कित्ति सुहं च लभ्रूण सिझंति"
-मूलाचार, ४/१९६. इस गाथा के आधार पर या तो यह स्वीकार करना पड़ेगा कि दिगम्बर सम्प्रदाय का एक वर्ग स्त्री-मुक्ति की अवधारणा में विश्वास करता था या यह कि मूलाचार दिगम्बर सम्प्रदाय का ग्रन्थ न होकर यापनीय सम्प्रदाय का ग्रन्थ था।
-द्रष्टव्य, प्राक्कथन, मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन । २. "ण विसिज्झइ वत्थधरो जिणसासणे जइ विहोइतित्थयरो"
-सुत्तपाहुड, २३. ३. प्रवचनसार, ३/८-९.
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