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१५८ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी - संघ
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जो भिक्षुणी पारिवासिक छन्ददान से शिक्षमाणा को भिक्षुणी बनाये ।
जो भिक्षुणी प्रतिवर्ष भिक्षुणी बनाये । जो भिक्षुणी वर्ष में दो भिक्षुणी बनाये । जो भिक्षुणी निरोग होते हुये छाते को धारण करे |
जो भिक्षुणी निरोग होते हुए सवारी से जाये । जो भिक्षुणी संघाणी (माला) को धारण करे । जो भिक्षुणी स्त्रियों के आभूषण को धारण करे |
जो भिक्षुणी सुगन्धित चूर्ण (गन्धवण्णकेन ) से नहाये ।
जो भिक्षुणी तिल की खली वाले जल में ( वासितकेन पिञ्ञा केन) नहाये ।
जो भिक्षुणी अन्य भिक्षुणी से अपने शरीर को मलवाये |
जो भिक्षुणी शिक्षमाणा, श्रामणेरी अथवा गृहिणी से शरीर मलवाये । जो भिक्षुणी भिक्षु के सामने बिना पूछे
आसन पर बैठे ।
जो भिक्षुणी अवकाश माँगे बिना प्रश्न पूछे । जो भिक्षुणी बिना कंचुक के गाँव में प्रवेश करे |
जो भिक्षुणी जानबूझकर झूठ बोले । जो भिक्षुणी वचन मारे ( ओमसवाद) । जो भिक्षुणी चुगली (पेसुञ्ज) करे । जो भिक्षुणी व्यतिक्रम से धर्म का उपदेश करे |
जो भिक्षुणी अन - उपसम्पन्ना के साथ दोतीन रात से अधिक एक साथ सोये । जो भिक्षुणी पुरुष के साथ सोये । जो भिक्षुणी (विदुषी भिक्षुणी को छोड़ कर ) पाँच-छः वचनों से अधिक धर्म का उपदेश करे ।
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