________________
१५६ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ ५० x जो भिक्षुणी मिथ्या विद्या (तिरच्छान
विज्जा) को पढ़ाये। ५१ ११६ जो भिक्षुणी बिना अनुमति के भिक्षु के
आराम में प्रवेश करे।। जो भिक्षुणी भिक्षु को दुर्वचन कहे। . जो भिक्षुणी क्रुद्ध हो गण की निन्दा करे । जो भिक्षुणी तृप्त हो जाने पर भी भोजन ग्रहण करे। जो भिक्षुणी गृहस्थ-कुल से ईर्ष्या करे । जो भिक्षुणी भिक्षु-रहित स्थान में वर्षावास करे । जो भिक्षुणी दोनो संघों के समक्ष प्रवारणा न करे। जो भिक्षुणी उपदेश अथवा उपोसथ के लिए न जाये। जो भिक्षुणी प्रति पन्द्रहवें दिन भिक्षु-संघ के पास उपोसथ पूछने तथा उवाद सुनने न जाये। जो भिक्षुणी गुह्य-स्थान के फोड़े को बिना संघ या गण की अनुमति के अकेले षुरुष से अकेले धुलवाये या लेप कराये। जो भिक्षणी गर्भिणी को भिक्षणी बनाये। 'जो भिक्षणी दुध पिलाने वाली माता को भिक्षुणी बनाये। जो भिक्षणी षड्धर्मों का दो वर्ष तक पालन किये बिना शिक्षमाणा को भिक्षुणी बनाये । जो भिक्षुणी शिक्षमाणा को संघ की सम्मति
के बिना भिक्षुणी बनाये । ___ १०० जो भिक्षुणी १२ वर्ष से कम की विवाहिता
को भिक्षुणी बनाये। जो भिक्षुणी १२ वर्ष की विवाहिता को दो वर्ष तक षडधर्मों की शिक्षा दिये बिना भिक्षुणी बनाये।
१३३
xx
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org