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१५४ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ
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जो भिक्षुणी भोजन काल के पूर्व ही गृहस्थों के घरों में बैठे ।
जो भिक्षुणी भोजनकाल के पश्चात् गृहस्थों के घरों में बैठे ।
जो भिक्षुणी विकाल (मध्याह्न के बाद ) गृहस्थों के घरों में बैठे ।
जो भिक्षुणी अन्यथा ग्रहणकर ( दुग्गहितेन ), अन्यथा धारण कर ( दुप्पधारितेन ) दूसरी भिक्षुणी की उकसावे ।
जो भिक्षुणी अपने या दूसरे को शाप दे । जो भिक्षुणी स्वयं को पीट-पीट कर रोये । जो भिक्षुणी निर्वस्त्र होकर स्नान करे । जो भिक्षुणी उदकशाटिका वस्त्र उचित नाप का न बनवाये ।
जो भिक्षुणी दूसरी भिक्षुणी के चीवर को कोई कार्य न रहने पर भी न सिले, न सिलवाये ।
जो भिक्षुणी पाँचवे दिन अवश्य संघाटी धारण करने के नियम का अतिक्रमण करे ।
जो भिक्षुणी बिना पूछे दूसरे के चीवर को धारण करे ।
जो भिक्षुणी गण की चीवर प्राप्ति में विघ्न डाले |
जो भिक्षुणी नियमानुसार चीवर बँटवाने में बाधा डाले । जो भिक्षुणी चीवर को परिव्राजक या परिव्राजिका को दे ।
जो भिक्षुणी चीवर प्राप्ति की आशा कम होने से ( दुब्बलचीवर पच्चासाय) चीवर काल की अवधि (आश्विन पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक) का अतिक्रमण करे |
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