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________________ महेश्वरी प्रसाद, रीडर, प्रा० भा० इ० सं० एवं पुरा० विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, तथा डॉ० सागरमल जैन, निदेशक, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी को है, जिनका मैं कृतज्ञ एवं ऋणी हूँ। गुरुद्वय के उत्साहजनक, वात्सल्यपूर्ण तथा विद्वतापूर्ण निर्देशन में यह शोधप्रबन्ध यथासमय में पूर्ण हो सका है। __ मैं डॉ० एस० बी० देव, डाइरेक्टर, डेकन कालेज, पोस्ट ग्रेजुएट एण्ड रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना, का भी ऋणी हूँ। उन्होंने जैन एवं बौद्ध भिक्षुणियों से सम्बन्धित प्रत्येक नियमों की साथ-साथ ही तुलना करने की सलाह दी थी जिससे यह शोध-प्रबन्ध अधिक महत्त्वपूर्ण हो सका है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मेरे आदरणीय गुरु प्रो० जी० आर० शर्मा, प्रो० जे० एस० नेगी, प्रो० बी० एन० एस० यादव का मैं हृदय से आभारी हूँ जिनके शुभाशीर्वादों के फलस्वरूप यह शोध-प्रबन्ध पूर्ण हो सका है। डॉ० मारूति नन्दन प्रसाद तिवारी, रीडर, कला इतिहास विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, डॉ० हरिहर सिंह, व्याख्याता, सान्ध्य कालेज, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, का मैं आभारी हूँ जिनसे समयसमय पर बहुमूल्य सुझाव तथा प्रोत्साहन मिलता रहा। __सयाजीराव गायकवाड़ पुस्तकालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय तथा शतावधानी रत्नचन्द्र पुस्तकालय, पा० वि० शोध संस्थान, वाराणसी के अधिकारियों का मैं कृतज्ञ हैं जिन्होंने पूस्तके उपलब्ध कराने में प्रत्येक प्रकार से सहयोग दिया। पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान द्वारा शोध छात्रवृत्ति तथा आवासीय सुविधा प्राप्त हुई, इसके लिए संस्थान के माननीय संचालकों एवं कर्मचारियों का मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ। ___ मैं अपने मित्रों डॉ० भिखारीराम यादव, डॉ. रविशंकर मिश्र, श्री रवीन्द्र नाथ मिश्र, श्री अशोक कुमार सिंह, अजयकुमार सिंह, का भी अत्यन्त आभारी हूँ जिनसे सर्वदा प्रोत्साहन मिलता रहा है । अन्त में, माता-पिता एवं पत्नी श्रीमती निर्मला सिंह के प्रति आभार प्रकट करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ जिन्होंने पारिवारिक दायित्वों से मुक्त रखकर मुझे विद्या-उपासना का अवसर दिया। ___ ग्रन्थ-मुद्रण का कार्य वर्द्धमान मुद्रणालय ने सम्पन्न किया है-अतः उनके प्रति भी मैं अपना धन्यवाद ज्ञापन करता हूँ। बसंतपंचमी अरुण प्रताप सिंह दिनांक १४-२-८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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