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८२ : जेन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ
"विहार" शब्द अंकित है ।" बौद्ध ग्रन्थ महावंस के अनुसार सिंहल नरेश पाण्डुका भय ने निर्ग्रन्थों (जैन भिक्षुओं) के लिए विहार निर्मित करवाया था । इसी प्रकार हाथीगुम्फा अभिलेख से भी जैन भिक्षुओं के लिए गुफाविहारों के निर्माण का उल्लेख प्राप्त होता है ।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि जैन भिक्षु एवं भिक्षुणी इन मन्दिरों एवं विहारों में रहने लगे थे । “प्राकृतिक गुफाओं को इस प्रकार से परिवर्तित किया गया कि वे आवास के योग्य बन सकीं। ऊपर, बाहर की ओर लटकते हुए प्रस्तरखण्ड को शिला - प्रक्षेप के रूप में इस प्रकार काटा गया कि उसने वर्षा के जल को बाहर निकालने तथा नीचे शरण स्थल बनाने का काम किया । गुफाओं के भीतर शिलाओं को काटकर शय्याएँ बनायी गयीं, जिनका एक छोर तकिए के रूप में प्रयोग करने के लिए कुछ उठा हुआ रखा गया । शय्याओं को छेनी से काट-काटकर चिकना किया गया । ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ पर तो पालिश भी की गयी थी" । "
इस प्रकार स्पष्ट है कि द्वितीय- प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व से ही जैन भिक्षुओं के लिए विहार निर्मित होने लगे थे । इन विहारों की आवश्यकता की पूर्ति हेतु भूमि दान की प्रथा भी आरम्भ हुई । गुप्त सम्राट बुद्धगुप्त के शासन काल का पहाड़पुर से प्राप्त एक ताम्रपत्र उल्लेखनीय है । इसमें एक ब्राह्मण दम्पति द्वारा जैन - विहार को भूमिदान देने का उल्लेख है । " यद्यपि जैन भिक्षुणियों के लिए निर्मित किसी विशिष्ट विहार का उल्लेख नहीं प्राप्त होता, परन्तु यह सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि इन विहारों का उपयोग भिक्षुणियाँ भी करती रही होंगी क्योंकि विहार में रहने की उनकी आवश्यकता भिक्षु समुदाय से कहीं अधिक थी । "
बौद्ध भिक्षुणी विहार
ऐसा प्रतीत होता है कि महात्मा बुद्ध मूलतः बौद्ध भिक्षु संघ या भिक्षुणीसंघ के आवास या विहार के निर्माण के समर्थक नहीं थे । भिक्षुओं को उपसम्पदा के समय जिन चार निश्रयों की शिक्षा दी जाती थी, उसमें से
१. जैनकला एवं स्थापत्य, भाग प्रथम, पृ० ५४. २. महावंस, १० / ९७-९८.
3. Epigraphia Indica, Vol. 20, P. 72. ४. जैनकला एवं स्थापत्य, भाग प्रथम, पृ० ९७. 5. Epigraphia Indica, Vol, 20, P, 59.
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