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सन्दर्भ :
१. श्रीकात्यायनगोत्रीयो देवर्षिब्राह्मणाङ्गजः ।
देवश्रीकुक्षिभूर्विद्वान् सिद्धसेन इति श्रुतः ।। - प्रभावकचरित 'वृद्धवादिसूरि चरितम्' - ३९, सम्पा० जिनविजय मुनि, सिंघी जैन ग्रन्थमाला अहमदाबाद, वि०स०१९९७ । (क्रमश:)
तस्यराज्येमान्यः कात्यायनगोत्रावतंसो देवर्षिद्विजः ।
ii.
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८.
सिद्धसेन दिवाकर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
९.
तत्पत्नी देवश्रीसिका । तयोः सिद्धसेनोनाम पुत्रः । । - प्रबन्धकोश- राजशेखर सूरि, सम्पादक - जिनविजय, सिंघी जैनग्रन्थमाला, अहमदाबाद, सं० १९९७, पृष्ठ- ५।
Siddhasena Divakara was a Yapaniya and that he hailed from the South, especially Karnataka, Dr. A.N. Upadhye 'Siddhasena's Nyāyāvatāra and other works, Introduction. p. XV. Jain Sahitya Vikas Mandal, Bombay. 1971.
This is born out by a latter Prabandha that Siddhasena came from the south. Karnataka and his name was Bhatta Diwakara. ibid- p.XIII, XIV.
The term Sanmati, another name of Mahāvīra and therefore rightly used in the title of the Sanmatitarka or sūtra, is found in the Nāmamālā of Dhananjaya which is more populor in the south especially in Karnataka. ibid. XVI.
किसी भी एकान्त पक्ष को स्वीकार करने में दोष आता है; इस दोष को स्पष्ट करने के लिए कुन्दकुन्द (प्रवचनसार, १ / ४६ ) एवं सिद्धसेन (सन्मति, का० ११७ - १८) दोनों ने संसार एवं मोक्ष की अनुपपत्ति की कल्पना का एक सा उपयोग किया है। समन्तभद्र ने भी अनेकान्त दृष्टि की पुष्टि में यह कल्पना की है। वादिदेवसूरि, पार्श्वनाथचरित, माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला समिति, वीर नि०सं० २४४२, १/२२ ।
वही पृष्ठ-XVII.
सन्मतिप्रकरण प्रस्तावना, पृष्ठ ३० ।
भवद्गामे वीतरागः सवर्शोऽस्ति नवा ततः । आहुस्तेऽस्य वचे मिथ्या जैन चैत्ये जिने सतिः । - प्रभावकचरित, 'वृद्धवादिसूरिचरितम्' - ४९ । १०. अदीक्षयत जैनेन विधिना तमुपस्थितम् । नाम्ना कुमुदचन्द्रश्च स चक्रे वृद्धवादिना । - प्रभावकचरित, ८वां प्रबन्ध-५७।
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