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________________ जीवन वृत्तान्त घटना से संघ ने दिवाकर के शेष पाँच वर्ष पूरे होने के पूर्व ही गण में सम्मिलित कर लिया।२१ संघ में सम्मिलित कर लिये जाने के बाद आचार्य सिद्धसेन गीतार्थ शिष्यों के साथ उज्जयिनी से दक्षिण की ओर प्रस्थान किये। गामानुग्राम विचरते हुए वे भृगुकच्छ (भृगुपुर सम्भावित भड़ोंच) नगर के एक ऊँचे भाग पर पहुँचे। वहाँ उपस्थित ग्रामीण ग्वालों ने सिद्धसेन से धर्म सुनने की इच्छा प्रकट की। उनके आग्रह पर दिवाकर ने तुरन्त ही प्राकृत भाषा में उस सभा के योग्य एक रासा बनाकर ताल के साथ तालियाँ बजाते एवं वृत्ताकार घूमते हुए गाकर सुनाया नविमारियइ नविचोरियइ, परदारह संगुनिवारयइ। थोवमवि थोवं दाऽअइ तउ सग्मिटु गुढगुएररइसइ।। २२ दिवाकर के इस वचन से ज्ञानप्राप्त उन ग्वालों ने उनकी स्मृति के लिए तालरासक नामक एक गाँव बसाया। सिद्धसेन ने वहाँ एक मन्दिर बनवाकर उसमें ऋषभदेव की मूर्ति स्थापित कराया जिसे आज भी लोग पूजते हैं। इसी क्रम में प्रभावना करते हुए आचार्य दिवाकर भृगुकच्छ गये। वहाँ बलमित्र का पुत्र धनञ्जय राजा था। उसने आचार्य का पूर्ण सत्कार किया। जब धनञ्जय शत्रुओं से आक्रांत हुआ तो सिद्धसेन ने सैन्यनिर्माण की अपनी कला से उसकी सहायता कर उसे विजयश्री दिलाई। धनञ्जय भी अवन्ती नरेश विक्रमादित्य एवं कार के राजा देवपाल की तरह आचार्य सिद्धसेन का परमभक्त बन गया। ___ जीवन के सन्ध्याकाल में आचार्य सिद्धसेन दक्षिणापथ के प्रतिष्ठानपुर (पेंठन, पृथ्वीपुर) पहुँचे। यहाँ आयुष्य बल को क्षीण जानकर योग्य शिष्य को अपने पद पर स्थापित कर प्रयोपवेशन (अनशन) पूर्वक मरकर वे स्वर्गवासी हुए।२३ । इस प्रकार हम देखते हैं कि आचार्य सिद्धसेन दिवाकर के जीवन से सम्बन्धित जो भी तथ्य हमें उपलब्ध हैं वे मुख्यत: प्रबन्धों पर ही आधारित हैं, जिनमें यत्र-तत्र कतिपय अन्तर भी परिलक्षित होते हैं, शेष दो साधन उल्लेख और रचनाएँ उनके जीवन पर कम, उनके पूर्ववर्ती एवं परवर्ती आचार्यों के पौर्वापर्व सम्बन्ध पर अधिक प्रकाश डालती हैं जिसे हम उनकी रचनाओं के क्रम में यथास्थान व्याख्यायित करने का प्रयास करेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002085
Book TitleSiddhsen Diwakar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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