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अध्याय-२
जीवन वृत्तान्त
अपने जीवन वृत्तान्त के विषय में न तो स्वयं सिद्धसेन, न ही उनके निकट परवर्ती या पूर्ववर्ती किसी आचार्य ने ही कुछ लिखा है। उनके जीवन के विषय में जो कुछ तथ्य हमें प्राप्त होते हैं उनके मुख्यरूप से तीन साधन हैं- (१) प्रबन्ध, (२) उल्लेख और (३) उनकी रचनाएँ। प्रबन्धों में पाँच प्रबन्ध उपलब्ध हैं जिनमें प्रभाचन्द्र का प्रभावकचरित' (वि०सं० १३३४), मेरुतुंग का प्रबन्धचिन्तामणि' (वि०सं०१३६१) एवं राजशेखर कृत 'चतुर्विंशति प्रबन्य' (वि० सं०१४०५) प्रकाशित तथा दो अप्रकाशित हैं। अप्रकाशित प्रबन्धों में एक गद्यप्रबन्ध भद्रेश्वर की कथावली में आया है एवं दूसरा पद्यप्रबन्ध (लेखक, समय अज्ञात)। इसके अतिरिक्त भद्रेश्वर की कथावली(१०वी-११वीं शती) एवं संघतिलक (वि०सं०१३६५-१४२१) से सिद्धसेन के जीवन पर कुछ प्रकाश पड़ता है। इनमें प्रभावकचरित में आया हुआ प्रबन्ध शेष दोनों प्रबन्धों से अर्वाचीन है। इस प्रबन्ध के अनुसार आचार्य सिद्धसेन का जन्म उज्जयिनी नगरी के कात्यायन गोत्रीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम देवर्षि एवं माता का नाम देवश्री था। उज्जयिनी पर उस समय विक्रमादित्य का राज्य था एवं देवर्षि राजमान्य ब्राह्मण थे। इनकी बहन सिद्धश्री साध्वी थीं। प्रबन्धचिन्तामणि में इन्हें दक्षिण के कर्णाटक का निवासी बताया गया है। प्रो०ए०एन०उपाध्ये ने अपनी पुस्तक 'Siddhasena's Nyayavatara and other works' में सिद्धसेन को यापनीय बताते हुए कहा है कि सिद्धसेन दक्षिण के कर्णाटक से आये थे और उनका नाम भट्ट दिवाकर था। अपने मत के समर्थन में प्रो० उपाध्ये ने कुछ तर्क दिये हैं
(१) 'सन्मति' पद जो महावीर का अपर नाम है, एवं जो सन्मतितर्क या सूत्र में सही अर्थों में प्रयुक्त है, का प्रयोग धनञ्जय के 'नाममाला' में भी मिलता है जो दक्षिण, विशेषतः कर्णाटक में अधिक लोकप्रिय है।
(२)सिद्धसेन के 'सन्मतितर्क' एवं कुन्दकुन्द के प्रवचनसार में अधिक साम्य है और इसके कथ्य एवं विचार समन्तभद्र एवंवट्टकेर की रचनाओं से भी काफी मिलते हैं।" इसकी कुछ गाथाएँ वट्टकेर के मूलाचार से पूर्णतया मिलती हैं। वट्टकेर और कुन्दकुन्द
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