SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका XIX ऊपर उठकर तटस्थ दृष्टि से किया है। यह कृति सिद्धसेन दिवाकर के व्यक्ति एवं कृतित्व को उजागर करने में सफल सिद्ध होगी यह मेरा पूर्ण विश्वास है। उन्होंने कतिपय बिन्दुओं पर मतवैभित्र्य होते हुए भी इस कृति के लिए भूमिका लिखने का आग्रह किया, अत: मैं उनके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ तथा यह अपेक्षा करता हँ कि भविष्य में भी वे जैन विद्या के ग्रंथ भण्डार को अपनी नवीन-नवीन कृतियों से आपूरित करते रहेंगे। २८ नवम्बर, १९९७ वाराणसी डॉ०सागरमल जैन संदर्भ १. देखें- सन्मति प्रकरण-सम्पादक, पं० सुखलाल जी संघवी, ज्ञानोदय ट्रस्ट, . - अहमदाबाद, प्रस्तावना, पृष्ठ ६ से १६। २अ. दंसणगाही-दंसणणाणप्पभावगणि सत्याणि सिद्धिविणिच्छय-संमतिमादि गेण्हंतो असंथरमाणे जं अकप्पियं पडिसेवति जयणाते तत्थ सो सुद्धो अप्रायश्चित्ती भवतीत्यर्थः। - निशीथचूर्णि, भाग १, पृष्ठ १६२। दसणप्पभावगाण सत्थाण सम्मदियादिसुतणाणे य जो विसारदो णिस्सकियसुत्तथो त्ति वुत्तं भवति। - वही भाग ३, पृष्ठ २०२। ब. आयरिय सिद्धसेणेण सम्मई ए पइट्ठि अजसेणं। दूसमणिसादिवागर कप्पत्तणओ तदक्खेणं ।। - पंचवस्तु (हरभिद्र) १०४८ स. श्रीदशाश्वतस्कन्य मूल, नियुक्ति, चूर्णिसह-पृ० १६ (श्रीमणिविजय ग्रन्थमाला नं० १४ सं० २०११) (यहाँ सिद्धसेन को गुरु से भिन्न अर्थ करने वाला भाव-अभिनय का दोषी बताया गया है)। पूर्वाचार्य विरचितेषु सन्मति-नयावतारादिषु ......... । - द्वादशारं नयचक्रम्, (मल्लवादि)। भावनगरस्या श्री आत्मानन्द सभा, १९८८ तृतीय विभाग, पृ० ८८६। ३अ. अणेण सम्मइसुत्तेणसह कथमिदं वक्खाणं ण विरूज्झदे । (ज्ञातव्य है कि इसक पूर्व सन्मतिसूत्र की गाथा ६ उद्धृत है) - धवला, टीका समन्वित घट्खण्डागम १/१/१ पुस्तक १, पृष्ठ १६। Jain Education International For Private & Personal Use Only .. www.jainelibrary.org
SR No.002085
Book TitleSiddhsen Diwakar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy