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________________ श्री कुंदकुंदाचार्य का गृहस्थ अवस्था का काल ११ वर्ष रहा, दीक्षाकाल ३३ वर्ष, पटस्थकाल ५१ वर्ष १० माह १० दिन, विरह दिन ५, इस प्रकार से ६५ वर्ष १० माह १५ दिन सम्पूर्ण आयु थी । श्री कुंदकुंदाचार्य के ही निम्नांकित चार नाम और थे१. श्री पद्मनन्दि २. श्री वक्रग्रीव, ३. गृद्धपिच्छ और ४. श्री इलाचार्य ( एलाचार्य ) ।” इस सन्दर्भ में एक श्लोक भी है ". प्राचार्य कुन्दकुन्दाख्यो वक्रग्रीवो महामुनिः । एलाचार्यो गृद्धपिच्छः पद्मनन्दी वितायते ॥ इसमें कोई विरोध नहीं है कि प्राचार्यश्री का कुन्दकुन्द नाम उनके जन्मस्थान अथवा निवासस्थान ' कोण्डकुंदी' के कारण विख्यात हुआ । जनश्रुति है कि सीमंधरस्वामी के समवसरण में जाते समय अपनी मयुरपिच्छिका मार्ग में कहीं गिर जाने पर इन्होंने गिद्ध के पंखों की पीछी धारण कर ली थी, इस कारण इनका गृद्धपिच्छ नाम प्रसिद्ध हो गया । किन्तु यह नाम प्रचार / प्रसिद्धि में बहुत कम प्रया क्योंकि आचार्य उमास्वाति भी इसी उपनाम से प्रसिद्ध थे । आचार्य श्री सीमंधरस्वामी के समवसरण में उपस्थित विदेहवासियों के मुकाबले छोटा ( वहां होने वाली इलायची जितना ) शरीर होने के कारण समवसरण में उपस्थित श्रोताओं ने सीमंधरस्वामी से पूछा कि यह इला ( इलायची ) जैसे कदवाला मनुष्य कौन है ? सीमंधरस्वामो ने इनका परिचय दिया । तभी से इनका नाम इलाचार्य ( एलाचार्य) उपनाम प्रसिद्ध हो गया = ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002084
Book TitleAcharya Kundkunda Ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1988
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, E000, E005, N000, & N015
File Size1 MB
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