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चार्य भी ऐसी महान् विभूतियों में से थे जिन्होंने अपने व्यक्तित्व अथवा जीवन के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा।
आराधनाकथाकोष (१५वीं शताब्दी) व पुण्याश्रवकथाकोष के अनुसार उनका जन्म पिडथनाडू प्रदेश के कुरुमरई ग्रामवासी करमण्डु नामक वैश्य के घर हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती था। ये अपने पूर्वजन्म में इसी दम्पति के यहां ग्वाल थे। दम्पति के कोई सन्तान न थी। एक दिन ग्वाला जंगल में गायें चराने गया तो उसे एक सन्दूक में बन्द कुछ आगमग्रन्थ मिले । ग्वाले ने उन्हें बड़ी साज-सँवार एवं भक्ति-भाव से सुरक्षित रखा। एक बार जब गृहस्वामी करमण्ड के घर एक दिगम्बर मुनिराज आहार के लिए आये तो ग्वाले ने वे ग्रंथ उन्हें भेंट कर दिये। मुनिराज ने बताया कि सेठ के आहारदान और ग्वाले के ज्ञानदान के फलस्वरूप यह ग्वाला मरकर इसी सेठ के घर पुत्ररूप में जन्म लेगा । कालान्तर में सेठ को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई । वही पुत्र दीक्षित होकर 'प्राचार्य कुन्दकुन्द' के रूप में सुप्रसिद्ध हुआ।
कुंदकुंद कब हुए इस सम्बन्ध में विद्वानों में कुछ मतभेद था किन्तु डॉ. ए. एन. उपाध्ये ने पर्याप्त विचार कर इनका समय ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी के द्वितीयार्ध से ईसा की प्रथम शताब्दी के प्रथमार्ध तक सिद्ध किया है। यह मत इतिहास सम्मत है और विद्वानों द्वारा पुष्ट भी।
मूलसंघ नंद्याम्नाय बलात्कारगण सरस्वतीगच्छ कुंदकुंदान्वय की पट्टावली' की प्रतिलिपि के अनुसार
चारित्रसार, प्र.-दिगम्बर जैन समाज, सीकर, बी. नि. सं. २५०१ पृष्ठ ३०५।
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