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________________ प्राकृत आगमेतर जैन श्रीकृष्ण साहित्य जनों को प्रेरित करता रहूंगा ।" उनकी पुत्रियों द्वारा संयम ग्रहण इसका सबल प्रमाण है । उनके कुटुंब के अनेक सदस्यों ने भगवान से प्रव्रज्या ग्रहण की जिनमें उनकी रानियाँ पुत्रादि भी सम्मिलित हैं । श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व का यह उज्ज्वल पक्ष उन्हें जैन साहित्य में प्रमुख स्थान दिलाने में बड़ा सहायक रहा है । यही कारण है कि पांडवों, प्रद्युम्न कुमार, गजसुकुमाल आदि से संबद्ध इन रचनाओं में भी श्रीकृष्ण का वृत्तांत सविस्तारपूर्वक दिया गया है । श्रीकृष्ण में जो धर्मानुराग की विशेषता है, उसके कारण जैन ग्रन्थकारों ने उनका चरित्र अपने अनुरूप पाया और उसका खूब बखान किया। प्राचीन और अर्वाचीन सभी भाषाओं के जैन साहित्य में कृष्णचरित्र विवेचन मिलता है । प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिंदी व कन्नड, तमिल तेलगु, गुजराती, मराठी आदि प्रादेशिक भाषाओं में भी ऐसे जैन ग्रन्थों की भरमार है जिनमें श्रीकृष्ण चरित्र किसी न किसी रूप में अपनाया गया है । श्रीकृष्ण महत्व आगमेतर प्राकृत जैन साहित्य में श्रीकृष्ण को समुचित महत्व दिया गया है । एतएव इसी स्तर पर यहाँ विवेचन है । इस वर्ग के साहित्य में भी श्रीकृष्ण का वैसा ही शुभ्र धवल करुणाशील और पराक्रमी स्वरूप स्थापित हुआ है, जो आगमों में प्रतिष्ठित हो चुका था । आगमेतर साहित्य के लिए आगम ही आदर्श और आधारभूत स्रोत रहे हैं । अतः मूल ग्रन्थों के साथ इन आगमेतर ग्रन्थों में इतना साम्य भी स्वाभाविक ही लगता है | आगमेतर ग्रन्थों का एक सारा विभाग तो ऐसा है जिसमें आगमों की व्याख्या के ही अनेक रूप मिलते हैं । यथा-निर्युक्ति, चूर्णि, भाष्य, टीका, आदि । इनके अतिरिक्त भी अनेक स्वतंत्र आगमेतर ग्रन्थों में श्रीकृष्ण चरित्र उपलब्ध होता है, ऐसे ग्रन्थों में 'हरिवंश चरियं' सर्वप्रथम ग्रन्थ माना जाता है जिसके रचनाकार विमल सूरि थे, किंतु यह कृति अनुपलब्ध है । श्री नाथूराम प्रेमी के मतानुसार (जैन साहित्य और इतिहास के पृ० ८७ ) चरियं साहित्य की परंपरा में लेखक की रचना 'पउम चरियं' को भी उल्लेखनीय स्थान प्राप्त है । २७ (१) वसुदेव हिण्डी - संघदास गणी प्रस्तुत ग्रन्थ आगमेतर रचनाओं में ऐसी प्राचीनतम उपलब्ध कृति है जिसमें श्रीकृष्ण जीवन के प्रसंगों का चित्रण है । वसुदेव हिण्डी का रचना- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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