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________________ हिन्दी जैन श्रीकृष्ण रास, पुराण-साहित्य और अन्य १६५ प्राचीन और अर्वाचीन जैन श्रीकृष्ण साहित्य में श्रीकृष्ण चरित्र के अनेकानेक प्रसंग अव्यवस्थित रूप से बिखरे पड़े हैं। इनका संकलन और इन्हें व्यवस्थित रूप देकर जैन दृष्टि से श्रीकृष्ण का समग्र व्यक्तित्व एक साथ उभारने के भी अध्यवसाय पूर्ण कुशल प्रयत्न हुए हैं। इस दृष्टि से पूज्य युवाचार्य मधुकरमुनि जी व पूज्यपाद देवेंद्रमुनि जी आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। मधुकर मुनिजी की 'जैन कथामाला की' रचना के विराट प्रयत्न को सभी दिशाओं से साधुवाद मिला है उन्होंने अपने “जैन श्रीकृष्ण कथा" में विभिन्न आगम व आगमेतर ग्रंथों से अपेक्षित प्रसंगों का चयन कर श्रीकृष्ण चरित को बड़ी कौशलता के साथ रूपायित किया है। इसी प्रकार पूज्यवाद श्री देवेंद्र मुनि जी शास्त्री ने अपने 'भगवान अरिष्टनेमि और कर्मयोगीश्रीकृष्ण : एक अनुशीलन ग्रंथ' में अथक श्रमशीलता, विद्वत्ता, बहुश्रुतता और बहुज्ञता का परिचय देते हुए अनेक ग्रंथों से अपेक्षित सामग्री जुटाकर श्रीकृष्ण का जो जैन परंपरा संमत स्वरूप खड़ा किया है वह एक श्लाघनीय और स्तुत्य कार्य है। इस ग्रंथ द्वारा विद्वान लेखक ने अनेक जैन मान्यताओं का प्रतिपादन और जैन दर्शन के अनेक मूलभूत विचारों का सुगम संप्रेषण भी किया है और साथ ही श्रीकृष्ण के संपूर्ण चरित्र को इस कौशल के साथ रूपायित किया है कि जैन परंपरा द्वारा स्वीकार्य स्वरूप में श्रीकृष्ण के चरित्र को सभी विशेषताएं स्वतः ही व्यक्त होकर निखर उठी हैं। इस ग्रंथ में मुनि जी की मौलिकता और शोधप्रधान दृष्टि विशेष द्रष्टव्य है।43 (१) हरिवंश पुराण हरिवंश पुराण के रचयिता शालिवाहन थे, जिनसेन कृत हरिवंश पुराण (संस्कृत) के आधार पर यह रचा गया है। रचयिता ने इसका उल्लेख अपनी रचना की प्रत्येक संधि के अंत में इस प्रकार दिया है :-'इति श्री हरिवंशपुराणे संग्रहे भव्यसमंगल करणे आचार्य-श्रीजिनसेन-विरचिते तस्योपदेशे श्रीशालिवाहन विरचिते।' यह ग्रंथ संवत् १६६५ सन् १६३८ में रचा गया जिसका कवि ने इस प्रकार उल्लेख किया है संवत् सोरहसै तहां भये, तापर पंचानव गहे । माघमास कृष्ण पछि जानि, सोमवार सुभवार बखानि ॥३॥ ७८॥ यह रचना जब हो रही थी तब लेखक आगरे में रहता था तथा वहीं पर यह रचना पूर्ण की गयी थी, उस समय शाहजहां आगरे में राज्य करता था । इसका भी उल्लेख४२. भगवान अरिष्टनेमि और कर्मयोगी : श्रीकृष्ण एक अनुशीलन-देवेंद्रमुनि शास्त्रा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002083
Book TitleJain Sahitya me Shrikrishna Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1991
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size12 MB
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