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जैन-परंपरा में श्रीकृष्ण साहित्य श्री चौथमलजी महाराज ने श्रीकृष्ण लीला की रचना की, नेमिचंद जी महाराज की रचना नेमिनाथ और राजुल है। आचार्य खूबचंद जी महाराज ने प्रद्युम्न और शांबकुमार की ढाल बनायी । जैन दिवाकर चौथमल जी महाराज ने भगवान नेमिनाथ और पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण 38 तथा मरुधरकेशरी श्री मिश्रीमल जी महाराज का महाभारत7 व प्रवर्तक शक्लचंद जी महाराज38 तथा प्रवर्तक सर्यमुनि जी महाराज का महाभारत भी सुन्दर रचनाएं हैं। तेरापंथी मुनियों को भी अनेक रचनाएं मिलती
पं० काशीनाथ जैन का नेमिनाथ चरित्र भी एक सुंदर कृति है।
शोध-संपादन के आज के युग में अनेक आधुनिक प्रतिभाशाली साहित्यकारों ने अपने कौशल का परिचय देते हए श्रीकृष्ण संबंधी चरित को अपने-अपने रूपों और आकारों में प्रस्तुत किया है। जयपुर, जोधपुर, खण्डप, पीपाड़, उदयपुर आदि स्थानकवासी भण्डारों में अनेक ग्रन्थ सुरक्षित हैं।
पं० सुखलालजी ने “चार तीर्थंकर" में और पंडित कैलाशचन्द जी ने 'जैन साहित्य के इतिहास को पूर्वपीठका' में श्रीकृष्णचरित की जैन परंपरा से अनुमोदित झांकी प्रस्तुत की है। श्री अगरचन्द जी नाहटा ने 'प्राचीन जैन ग्रन्थों में श्रीकृष्ण का नाम' के लेखों द्वारा व्यवस्थित रूप में संक्षिप्त किंतु ठोस व प्रामाणिक श्रीकृष्ण-जीवन के प्रसंग प्रस्तुत किए हैं। 'अरहंत नेमि और वासुदेव श्रीकृष्ण' में श्रीचन्दजी रामपुरिया का भी ऐसा ही सफल उपक्रम हमारे सामने आता है। श्री महावीर कोटिया ने "जैन श्रीकृष्ण साहित्य में श्रीकृष्ण" जैसे लेखों के माध्यम से श्रीकृष्ण चरित को अदभत कौशल के साथ ज्ञापित किया है। श्री कोटिया के ऐसे अत्यधिक महत्त्वपूर्ण लेख जिनवाणी पत्रिका में सादर स्थान प्राप्त करते रहे हैं।41 'मुनि हजारीमल अभिनंदन ग्रंथ' में इस संबंध में श्री कोटिया की प्रतिभा का परिचय मिला है।
३५. सं० पूज्य श्री देवेंद्र मुनिजी "नेमवाणी" ३६. भगवान नेमिनाथ और पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण, प्र० ब्यावर ३७. पांडव यशोरसायन (महाभारत) ले. मरुधरकेसरी मिश्रीमल, ३८. महाभारत, प्रवर्तक शुक्लचंदजी, प्र० अंबाला पंजाब ३६. महाभारत, सूर्यमुनि जी ४०. मुनि धनराज जी, जैन महाभारत आदि । ४१. जैन श्रीकृष्ण साहित्य विषयक लेख-जिनवाणी पत्रिका,
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