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विषय की शोधानुकूलता और भूमिका
विषय की शोधानुकूलता
श्रीकृष्ण “वासुदेव" विश्व की महानतम विभूतियों में अग्रगण्य हैं। साहित्य जीवन की समस्त गतिविधियों, स्वरूपों और प्रवृत्तियों का दर्पण होता है। साहित्य ही समाज, संस्कृति, दर्शन और आदर्शों का सफल वाहक होता है। ऐसी स्थिति में किसी विभूति के वर्चस्व कसौटी पर श्रीकृष्णचरित सौ-फीसदी खरा सिद्ध होता है। इस देश में साहित्य की अत्यन्त प्राचीन और अति समृद्ध परम्परा रही है। श्रीकृष्ण इस परम्परा में आद्योपांत विद्यमान हैं । वैदिक साहित्य से लेकर अधनातन साहित्य तक की इस विषय यात्रा में हमारा साहित्य सदा गतिमान रहा है। इस यात्रा में अनेक मोड़ आए, अगणित पड़ाव आए । प्रत्येक मोड़ और प्रत्येक पड़ाव में हमें श्रीकृष्ण के दर्शन होते हैं। भारतीय वाङ्मय का स्वरूप बदल गया, कथ्य और प्रमुख लक्ष्यों में परिवर्तन होते गए। काव्यरूप और कलेवर बिगड़ते बनते गए, भाषाओं के माध्यम नव-नवीन होते चले गए किन्तु कृष्ण-चरित्र की परंपरा अस्खलित और अक्ष ण्ण बनी रही है।
वेदों में व इतर संस्कृत साहित्य में पिंगल, अपभ्रश और ब्रज आदि सभी भाषाओं में श्रीकृष्ण संबंधी विपुल साहित्य रचा गया है । यह तथ्य इस बात का प्रबल द्योतक है कि भारत का जन-जीवन कितना कृष्णमय है । लोक जीवन पर श्रीकृष्ण का प्रभाव अत्यन्त गहन रूप में अंकित हैं—इसका प्रमाण हमारा लोक साहित्य है । भारत के लोक जीवन और भारतीय संस्कृति को जितनी दूर तक श्रीकृष्ण चरित प्रभावित कर पाया है, कदाचित उतना प्रभाव किसी अन्य दिशा से ग्रहण नहीं किया जा सकता। समस्त प्रादेशिक भाषाओं का साहित्य श्रीकृष्ण के रंग से रंजित है। श्रीकृष्ण के आदर्शों.
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