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प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत में कृष्ण कथा
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वसुदेव ने बलराम को अर्धासन दिया और श्रीकृष्ण को अंक में बिठाकर उनका भाल चमा। उन्होंने अपने ज्येष्ठ भ्राताओं को श्रीकृष्ण व बलराम का परिचय दिया और अतिमुक्त मुनि की भविष्यवाणी आदि की समग्र पूर्वकथा सुनायी।79 उन्होंने बताया कि वचनबद्धता की विवशता के कारण ही उन्हें कंस के अत्याचार सहने पड़े । देवकी के अतिशय आग्रहवश हो उसका सातवां गर्भ नंद के यहां छोड़कर उसके स्थान पर उसकी पुत्री को लाना पड़ा।
समुद्रविजय ने उग्रसेन को कारामुक्त किया व उनके साथ जाकर कंस का अंतिम संस्कार किया।81 जीवयशा को छोड़ कर शेष रानियों ने अपने पति को जलांजलि दी। जीवयशा ने प्रतिशोध वश प्रतिज्ञा कर ली कि यादव कुल का सर्वनाश करके ही मैं पति को जलांजलि दूंगी, अन्यथा जीवित ही अग्निप्रवेश कर लंगी। वह मथरा त्याग कर पितगह चली गयी। पिता ने उसे आश्वस्त किया कि तू कोई चिंता न कर, मैं तेरे शत्रु का विनाश कर दूंगा।82
श्रीकृष्ण व बलराम के अनुरोध पर समुद्रविजय ने उग्रसेन को पुनः मथुरा के सिंहासन पर आरूढ़ किया और महाराज उग्रसेन ने राजकुमारी सत्यभामा का श्रीकृष्ण के साथ विवाह संपन्न कराया 183 हरिवंशपुराण के अनुसार विद्याधरों के राजा सुकेतु ने अपनी पुत्री सत्यभामा के साथ श्रीकृष्ण का विवाह कर दिया ।84
सोमक प्रसंग :
जरासंध भी श्रीकृष्ण विरोधी हो गया था और राजा सोमक के साथ उसने समुद्रविजय को सन्देश भेजा कि कंस-संहारक श्रीकृष्ण बलराम को हमें सौंप दो अन्यथा तुम्हें हमारा कोपभाजन बनना होगा। समुद्र
७६. (क) त्रिषष्टि : ८/५/३१८-३२० (ख) भवभावना २४८०-२४८६ ८०. त्रिषष्टि : ८/५/३२३, ३२६ ८१. त्रिषष्टि : ८/५/३२८-३२६ ८२. (क) त्रिषष्टि : ८/५/३३५-३३८ (ख) हरिवंशपुराण : ३६/६५-६६ ८३. (क) त्रिषष्टि : ८/५/३४०-३४३ (ख) भवभावना : २५००-२५.२ ८४. हरिवंशपुराण : ३६/५३-६१ पृ० ४६७-६८ ८५. (क) त्रिषष्टि : ८/५/३४०-३४३ (ख) भवभावना : २५००-२५०२
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