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अनेकान्तिक दृष्टि का विकास
४९ देवेन्द्र मुनि के शब्दों में अनेकान्तवाद जैन-दर्शन की चिन्तन-धारा का मूल स्रोत है, जैन-दर्शन का हृदय है, जैन वाङ्मय का एक भी ऐसा वाक्य नहीं, जिसमें अनेकान्तवाद का प्राणतत्त्व न रहा हो । यदि यह कह दिया जाय तो तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जहाँ पर जैन-धर्म है वहाँ पर अनेकान्तवाद है और जहाँ पर अनेकान्तवाद है वहाँ पर जैन-धर्म है। जैन-धर्म और अनेकान्तवाद एक दूसरे के पर्यायवाची हैं।'
डॉ० पद्मराजे का कथन है कि अनेकान्तवाद जैन-दर्शन का हृदय है तथा नयवाद और स्याद्वाद इसकी रक्तवाहिनी धमनियाँ हैं। अनेकान्तवाद रूपी पक्षी नयवाद और स्याद्वाद रूपी पंखों से उड़ता है ।२।।
इस प्रकार अनेकान्तवाद जैन-दर्शन का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है । सम्पूर्ण जैन-दर्शन इसी पर आधारित है। मेरे विचार से यदि इसे जैन-दर्शन का निचोड़ कहा जाय तो उसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
१. जैन-दर्शन : स्वरूप और विश्लेषण, पृ० २५२ । 8. 'Anekanta is the heart of Jain Metaphysics and Nayavada
and Syadvada (or Saptabhangi) are its main arteries. Or, to use a happier metaphor, the bird of Anekantavada, flies on its two wings of Nayavada and Syadvada. Late Dr. Y. J. Padmarajiah-A Comparative Study of the Jaina Theories of Reality and Knowledge, p. 273.
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