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________________ ४२ जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय को आधुनिक व्याख्या उल्लंघन नहीं कर सकता। ___ अतः वस्तुएँ अनेकान्तिक एवं अनन्त धर्मात्मक हैं। यद्यपि यह ठीक है कि वस्तुओं का यह अनेकान्तिक और अनन्तधर्मात्मक स्वरूप व्यक्ति को असमंजस में डाल देता है किन्तु जब वस्तु का स्वरूप ही कुछ इस तरह का है तो इसके लिए कोई कर ही क्या सकता है ? बौद्ध दार्शनिक धर्मकोति का भी यही कहना है “यदींदं स्वयमेभ्यो रोचते के वयं ?" पुनः हमारा विवेचनीय विषय वस्तुतत्त्व गुण-पर्यायों के आश्रय के अतिरिक्त और है ही क्या ? वह मात्र गुण-धम-पर्यायों का पुंज ही तो है। इस बात को पाश्चात्य दार्शनिकों ने भी स्वीकार किया है। वे भी द्रव्य को "गुण पर्यायवत् द्रव्यम्" ही कहकर परिभाषित करते हैं। अतः वस्तुएँ अनन्त धर्मात्मक हैं। वस्तु के इसी अनेकान्तात्मक स्वरूप का प्रतिपादन अनेकान्तवाद करता है जिसे अब आगे प्रस्तुत किया जायेगा। (३) अनेकान्तवाद को अवधारणा ___ जैन-दर्शन एक वस्तुवादी एवं बहुतत्त्ववादी दर्शन है। वह तत्त्वों की अनेकता के साथ ही उनकी अनन्तधर्मता एवं अनेकान्तिकता में भी विश्वास करता है। उसके अनुसार न केवल विश्व में अनन्त सत्ताएँ हैं अपितु प्रत्येक सत्ता अनन्त धर्म, अनन्त गुण और अनन्त पर्यायों से युक्त है। इसीलिए वस्तु को अनन्त धर्मात्मक कहा गया है।२ मात्र इतना ही नहीं, प्रत्येक वस्तुओं में अनेक भावात्मक एवं अभावात्मक धर्मों के साथ ही परस्पर विरोधी धर्म युगल भी पाये जाते हैं। इसीलिए भी उसे अनेकान्तिक कहा गया है। यहाँ हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि वस्तु की अनन्तधर्मता एवं उसकी अनेकान्तिकता दोनों अलग-अलग बातें हैं । जहाँ अनन्त धर्मता वस्तु के अनन्त धर्मात्मक होने की सूचना देती है वहीं अनेकान्तिकता उससे एक कदम आगे बढ़कर यह सूचित करती है कि वह मात्र अनन्त धर्मात्मक ही नहीं है अपितु उसमें अनेक परस्पर विरोधी धर्म युगल भी हैं। एक ही वस्तु में एक ही साथ अनन्त धर्मों का पाया जाना वस्तु की अनन्त १. "आदीपमाव्योमसमस्वभावं स्याद्वाद मुद्रा नतिमंदि वस्तु ।" -अन्ययोगव्यवच्छेदिका, ५-१ । २. "अनन्त धर्मात्मकं वस्तु'–स्याद्वादमञ्जरी श्लोक २२ की टोका । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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