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________________ अनेकान्तिक दृष्टि का विकास १५ "शुद्ध ( स्वच्छ ) पानी जैसे मलिन हो सकता है, वैसे ही प्रयत्नों से शुद्ध निष्पाप संयमी मुनि फिर पापयुक्त मलिन हो सकता है तो फिर ब्रह्मचर्यादि प्रयत्नों का क्या फल रहा ?" सब वादी अपने वाद का गौरव गाते थे ।" इस प्रकार उस युग में ऐसो हो अनेक विचारधारायें प्रचलित थीं जो अपने-अपने मन्तव्य को प्रस्तुत कर उसे ही सत्य एवं दूसरे को असत्य बता रही थी । जिसके परिणामस्वरूप वे सभी तत्त्व की यथार्थता से बहुत दूर थे। परन्तु अपने मतवाद को पूर्ण सत्य से कम नहीं मानते थे । (ब) दार्शनिक चिन्तन में उपलब्ध विरोध- समाधान या समन्वय का प्रयत्न अनेक विचारणाओं की उपस्थिति में विवाद उग्र रूप ले रहा था । विचारक निरर्थक कल्पनाओं के जाल में फँसकर तर्क-वितर्क कर रहे थे, किन्तु उन अनेक विचारधाराओं के प्रवर्तकों के बीच कुछ लोग ऐसे भी थे जो तत्कालीन तर्क-वितर्कों को समाप्त करने का अथक प्रयास कर रहे थे । उन समन्वयवादी विचारकों का ऐसा विश्वास था कि उपर्युक्त सभी विचारधारायें मुलतत्त्व के केवल एक-एक पक्ष का ही निरूपण कर रही हैं । विश्व का मूलतत्त्व तो एक और पूर्ण है । उसे न केवल सत् कहा जा सकता है और न केवल असत् । यदि उसे केवल सत् या केवल असत् कहा जाय तो वह सापेक्ष एवं अपूर्ण हो जायेगा । अतः वह न केवल सत् है और न केवल असत्; अपितु वह सदसत् रूप है, अर्थात् वह सत् और असत् दोनों है । इस प्रकार के समाधान सूत्र उपनिषदों, बौद्ध पिटक ग्रन्थों एवं जैनागमों में पाया जाता है जिनका क्रमशः स्पष्टोकरण किया जायेगा | (१) औपनिषदिक चिन्तन में उपलब्ध विरोध- समाधान के सूत्र उपनिषद् कालीन समन्वयवादी विचारक तत्कालीन प्रचलित विभिन्न परस्पर विरोधी विचारधाराओं में समन्वय करने का प्रयत्न कर रहे थे । उनके उस समाधानवादी विचार के सूत्र उपनिषदों में यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं । उन सूत्रों में यह स्पष्ट किया गया है कि विश्व का मूलतत्व न तो १. इह संवुडे मुणी जाए, पच्छा होई अपावए । बियडं व जहा भुज्जो, नीरयं सरयं तहा ॥ Jain Education International सूत्रकृतांग १:१:३:१२ | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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