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यद्यपि स्याद्वाद और सप्तभंगी एक दुरूह विषय है, फिर भी लेखक ने उसे सहजढंग से प्रस्तुत किया है, उसका यह प्रस्तुतीकरण स्याद्वाद और सप्तभंगी के अध्ययन के क्षेत्र में वर्तमान में एक विशिष्ट भूमिका का निर्वाह करेगा, ऐसा मेरा विश्वास है ।
प्रो० सागरमल जैन पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध-संस्थान
वाराणसी
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