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________________ समकालीन तर्कशास्त्रों के सन्दर्भ में सप्तभंगी : एक मूल्यांकन १९१ कलकत्ता में है। यहाँ इसे ग्राहक अर्थ में नहीं लेना चाहिए; क्योंकि वह बम्बई और कलकत्ता दोनों स्थानों में एक साथ नहीं रह सकता है। वह या तो बम्बई में होगा या कलकत्ता में होगा; क्योंकि एक साधारण मानव के लिए यह असंभव है कि वह एक साथ बम्बई और कलकत्ता दोनों शहरों में रहे। ___ किन्तु कुछ वैकल्पिक (या) तर्कवाक्य ऐसे हैं जिन्हें ग्राहक अर्थ में लिया जा सकता है। जैसे वह बुद्धिमान है या परिश्रमी है। यहाँ वैकल्पिक "या" को ग्राहक अर्थ में लेने पर कोई दोष उत्पन्न नहीं होता है, क्योंकि वह बद्धिमान भी हो सकता है और परिश्रमी भी हो सकता है। परीक्षार्थी परीक्षा में अनुत्तीर्ण नहीं हुआ। इसलिए यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि वह परिश्रमी है या बुद्धिमान है या दोनों है। वस्तुतः यहां पर दोनों संभावनायें हैं कि वह बुद्धिमान भी हो सकता है, परिश्रमी भी हो सकता है और दोनों ही हो सकता है। किन्तु यदि वह कम अंक प्राप्त किया होता तो निश्चित रूप से कहा जा सकता था कि वह दोनों नहीं है उनमें कोई एक है। या तो वह परिश्रमी है या बुद्धिमान है। उपर्युक्त विचार नयवाद के लिए ग्रहण किया जा सकता है। स्याद्वाद के लिए, वियोजक को संयोजक के द्वारा स्थानान्तरित करना पड़ता है। सहार्पण को इस अर्थ में लिया गया है "ब" में "अ" को और से जोड़ा गया है; क्योंकि क्रमार्पण "ब" है अर्थात् २अ है और सहार्पण "अ+ब" है अर्थात् ३अ है। ____ चार मूल्यों के आधार पर यह विवेचन विशेष लाभप्रद होता है जैसा कि सारणी में बताया गया है। इस प्रकार पूर्ण ज्ञान अथवा प्रज्ञा के साथ में सभी आठ मूल्यों को सारणी में दिखाया जा सकता है ___ + | 1/6 1/6 1/3 1/2 1/6 1 1/3 1/3 1/2 2/3 16 | 1/3 1/3 1/2 2/3 1/3 | 1/2 1/2 2/3 5/6 1/2 1 2/3 23 5/6 1 क्रमार्पण की दो बार पुनरावृत्ति या सत्ता के साथ में या न सत्ता के साथ में सहार्पण को प्रदान करती है अर्थात् क्रमार्पण के बाद पुनः क्रमार्पण को दोहराने से सहार्पण प्राप्त होता है जो या तो सत्ता का अभिकथन For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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