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समकालीन तर्कशास्त्रों के सन्दर्भ में सप्तभंगी : एक मूल्यांकन १८९ इस तरह की विचारधारा संभाव्य तर्कशास्त्र में भी मिलती है। इसलिए सप्तभंगी की व्याख्या संभाव्य तकशास्त्र के आधार पर करना सम्भव है। क्योंकि सप्तभंगी के सिद्धान्त का प्रारूप संभाव्यता के सिद्धान्त के किसीकिसी प्रारूप के समीप बैठता है। इस सन्दर्भ में डॉ० मुकर्जी का प्रयास अवलोकनीय है-"स्याद्वाद के सातों भंगों को एक साथ लेने पर पूर्ण सत्ता का पूर्ण ज्ञान होता है। उनकी अलग-अलग हम बहु-मूल्यात्मक तर्कशास्त्र के एक संभाव्यात्मक व्याख्या के अनुसार निम्नलिखित मुल्य दे सकते हैं। इस पद्धति में हम दोहरे निषेध को विधेयात्यक पक्ष की तरह समान मूल्य प्रदान करते हैं। यद्यपि वे जैन-दर्शन में समान वस्तु की तरह मूल्य नहीं रखते । हमने अवक्तव्य के लिए भी निषेधात्मक मूल्य दिया है। जिसका कारण लेख के पिछले भाग में बताया जा चुका है। इसमें सहार्पण अर्थात् अवक्तव्य को "0" प्रतीक और क्रमार्पण अर्थात् अस्ति च नास्ति को "." (डाट) प्रतीक दिया गया है।
al (A 1/6
a (-A) 1/6 b. (= 2a) A • (- A) 2/6 or 1/3 c. - [AO - (- A)] 3/6 or 1/2 d. di / A - [AO - (CA)] 4/6 or 1/2
ca (-A) - [AO - (CA)] 4/6 or 2/3 e. (= c + b) A - (-A) - [A0 - (- A)] 5/6 I. (= 2c) A0 - (-A) 6/6 or 1 सप्तभंगी का यह प्रतीकात्मक रूप छः मूल्यात्मक संभाव्य तर्कशास्त्र के समान संचालित किया जा सकता है । जैसे किसी खेल में जब छः मँह वाले पासे को फेंका जाता है तब भिन्न-भिन्न अवसर पर भिन्न-भिन्न संभावनायें प्राप्त होती हैं। जैसे एक अवसर में 1/6 सम्भावना प्राप्त होती है दो में 2/6, तीन में 3/6, चार में 4/6, पाँच में 5/6 और छः में 6/6 अर्थात् पूर्ण अथवा किसी अन्य की प्राप्ति की सम्भावना होती है। इसके अतिरिक्त सप्तभंगी के प्रतीकीकरण में कुछ और भी नियमों को मानना पड़ता है, जिसको सारणी में दिखाया गया है। उपर्युक्त सारणी में 1/6 अर्थात् पहला मूल्य अवसर की प्राप्ति की 1/6 सम्भावना को
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