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________________ १८२ जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या जैन कहेंगे कि इस सत्य कथन का सही आकार यह होगा कि "स्यात् गायें सफेद हैं । जहाँ "स्यात्" अर्थ विषयक परिमाणक है। लेकिन यह शब्द योजना सम्बन्धी परिमाणक को भी समाहित करता है और सत्तात्मक परिमाणक के रूप में समझा जा सकता है कि "स्यात्" पद से विशेषित कथन वैयक्तिक कथन होगा और वह सामान्य कथन नहीं होगा। अब एक विधायक या विधेयात्मक कथन को वैयक्तिक विधेयात्मक तर्कवाक्य या प्रकथन के रूप में लिया जा सकता है। इसलिए "स्यात् गायें सफेद हैं" एक (1) सत्य तर्कवाक्य है । "गायें सफेद हैं" का निषेध "स्यात् गायें सफेद नहीं हैं" जिसे एक (0) असत्य तर्कवाक्य के रूप में लिया जा सकता है।" "अब विरोधिता के नियम के अनुसार सत्य (1) और असत्य (0) तर्कवाक्यों में सम्बन्ध यह है कि सत्य (1) और असत्य (0) दोनो एक साथ सत्य हो सकता है। दोनों एक साथ असत्य नहीं हो सकता है। यदि (१) "स्यात् P" सत्य है तो (२) "स्यात्-P" भी सत्य हो सकता है, जिससे दोनों 1 और 0 एक साथ ही सत्य हो सकते हैं और वैकल्पिक एवं संयोजक के द्वारा हम क्रमशः (३) "स्यात् PV-P" और (४) "स्यात् (P-P) को भी सत्य कह सकते हैं; क्योंकि दोनों 1 और 0 एक साथ सत्य हो सकते हैं। इस प्रकार प्रमाणसप्तभंगी के प्रथम चार भंगों का सत्यता-मूल्य 'T' द्वारा अभिव्यक्त किया जा सकता है। दूसरे तीन कथन पूर्व कथनों के संयोजन हैं। इसलिए वे भी सत्यता मूल्य 'T' के द्वारा प्रदर्शित किये जा सकते हैं । इस प्रकार प्रमाण सप्तभंगी के सातों कथन एक साथ सत्य हो सकते हैं। __ यद्यपि यह व्याख्या द्वि-मूल्योय तर्कशास्त्र के आधार पर तो ठीक है। परन्तु द्वि-मूल्यीय तर्कशास्त्र का सप्त भंगी से कोई सम्बन्ध ठीक नहीं बैठता है। इसलिए इस विवेचन में भी अनेक प्रकार को कठिनाइयाँ उत्पन्न हो जाती हैं। जिनमें से कुछ अधोलिखित हैं : (१) पहली कठिनाई यह है कि नास्ति भंग को असत्य तर्कवाक्य नहीं कहा जा सकता; क्योंकि असत्य तर्कवाक्य वह है जो विधायक तर्कवाक्य १. दार्शनिक त्रैमासिक, वर्ष २०, अङ्क ४, जुलाई १९७५, पृ० १७८ । २. वही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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